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जब सिविल सर्जन ही थानेदार के समक्ष बन गए है बौना तो आम जनो का क्या होता होगा ?
जब सिविल सर्जन ही थानेदार के समक्ष बन गए है बौना तो आम जनो का क्या होता होगा ?
न्यूज़ डेस्क पटना
काफी दिनों से कुछ लिख नहीं पाया था, वजह कुछ निजी काम समझ लीजिये इस दौरान हमारे एक मित्र है नीरज कुमार सिंह उर्फ़ पिंटू जी मधेपुर के है और अक्सर मधुबनी मीडिया के लिए खबर लिखते रहते है ! उनका कई खबर को प्रकाशित नहीं कर पाया लेकिन यह खबर ही कुछ ऐसी है जिसको जगह मिलना ही चाहिए था इसलिए आज खबर को प्रकाशित करना पड़ा है ! दरअसल मधेपुर में एक डॉक्टर साहेब है सूना है फर्जी डिग्री के बदौलत दो-दो नर्सिंग होम चलाते है ! बी० एस० झा नाम के इस शख्स के द्धारा संगत चौक पर श्यामा क्लिनिक एवं एक अन्य नर्सिंग होम चलाया जा रहा है ! लोगों ने शिकायत किया तो दिसंबर 2017 में झंझारपुर अनुमंडल पदाधिकारी विमल कुमार मंडल एवं अनुमंडलीय अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ कुमार कल्याण प्रसाद महथा ने क्लिनिक का जांच किया ! जहाँ के क्रम में कई प्रकार के अनियमितता पाया गया ! नर्सिंग होम में कई महिला मरीज भी मौजूद थी जिनका पेट खोलकर ऑपरेशन हुआ था लेकिन ढूंढने से भी वहाँकोई सर्जन मौजूद नहीं था ! जिसके बाद एसडीओ साहब ने नर्सिंग होम संचालक से उनका डॉक्टर का डिग्री एवं नर्सिंग होम के कागजात की मांग किया !जिसके बाद बीएस० झा ने अपना बी० एम० एस० का डिग्री साथ ही नर्सिंग होम के कागजात उपलब्ध कराये ! जाँच के क्रम में उपस्थित मरीजों से पूछताछ में पता चला की बीएस झा ने ही यह ऑपरेशन किया है !जिसके बाद अनुमंडल पदाधिकारी ने सभी कागजात सिविल सर्जन मधुबनी को सौप दिया ! सीएस मधुबनी के द्धारा यूनानी चिकित्सा परिषद पटना से सर्टिफिकेट का जांच करवाया गया और परिषद् ने सीएस मधुबनी को लिखा यह प्रमाणपत्र हमारे यहाँ से जारी नहीं किया गया है ! जिसके बाद सीएस मधुबनी ने प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा. दिनेश चौधरी, मधेपुर को एफआईआर दर्ज कराने का आदेश दिया ! हालांकि पीएचसी प्रभारी ने अपने पत्रांक 1105 दिनांक 21.04.2018 को मधेपुर थाना में एफआईआर दर्ज करने का आग्रह किया लेकिन थानेदार ने सरकारी कागज़ को महत्व नहीं दिया और एफआईआर दर्ज नहीं किया जिसके बाद सीएस ने पुनः पत्रांक 1227 से स्मार पत्र भेजा और पूर्व के पत्र का अनुपालन करने का सख्त निर्देश दिया ! सूना है एफआईआर करने की प्रक्रिया जारी है, खबर के प्रकाशन होने पर सायद बैक डेट में मामला भी दर्ज कर लिया जाय लेकिन सवाल बड़ा है जब सरकार के मामले को ही थानेदार सुनने को तैयार नहीं है तो आम जनता का ये थानेदार कितना सुनते होंगे ! देखना है एफआईआर में इतना लेटलतीफी तो कारवाई का क्या हश्र होता है !

जब सिविल सर्जन ही थानेदार के समक्ष बन गए है बौना तो आम जनो का क्या होता होगा ?
Reviewed by Abhishek
on
June 07, 2018
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