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Showing posts from May, 2021

जिस अस्पताल का चपरासी सफेद कुर्ता पैजामा पहनकर ड्यूटी करता हो उस अस्पताल मे मरीजों को कितना बोलने का मौका मिलता होगा?

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  कल डाक्टरों का हंगामा हो रहा था । बहाली के लिए आए डॉक्टरों को अचानक से बोला गया था आप पहले कोरोना टेस्ट कराइए फिर आप फॉर्म जमा कर सकते है। चारो तरफ अफरातफरी का माहौल था हजारों बेरोजगार डॉक्टर कड़कती धूप मे खड़े होकर कोरोना टेस्ट करा रहे थे जिसमें महिला डॉक्टर भी अपने बच्चों के साथ मौजूद थी। एक डॉक्टर ने फोन किया पत्रकार जी हमलोग कोरोना टेस्ट कराने के लिए लाइन मे है और पुलिस हमे पीट रही है । हम भी कैमरा कंधो पार लेकर निकल पड़े । खबर बनाया काफी भीड़ थी पुलिस को भीड़ नियंत्रण के लिए हल्की बल प्रयोग करने पड़ रहे थे । इस दौरान कड़ी धूप मे हालत खराब हो गयी थी लेकिन अस्पताल प्रबंधक का बाइट जरूरी था इसलिए उनके कार्यालय पहुचे । प्रबंधक डॉक्टर SS झा शाहब बड़े ही सभ्य थे उन्होने बैठने के लिए कहा तब तक जीविका दीदी चाय लेकर आयी तो उन्होने आग्रह किया चाय पीने के लिए । मेरे साथ abp न्यूज़ के अजयधारी जी थे उन्होने कहा मैं चाय नही पिता हूँ जिसके बाद मैं ने कहा यदि पानी पिलाए तो चाय जरूर पिएंगे । उन्होने बाहर कुर्ता पैजामा पहने नेता टाइप चपरासी को आवाज लगायी और पानी का बंदोबस्त करने को कहा जिसके बाद चपरासी अन

एक कमरे मे पंद्रह से बीस जिंदगी गुजारने वाले को भी सोशल डिस्टेंस का पाठ पढ़ाना कहां तक सही है?

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न्यूज़ डेस्क पटना  दो गज दूरी मास्क है जरूरी सरकार का नारा है और अमलीजामा पहनाने के लिए लाठियां चटकायी जा रही है । मुझे याद है महानगर दिल्ली मे बिताए वह दिन जब एक शौचालय का इस्तेमाल बिल्डिंग मे रहने वाले हर कोई करता था। बात 2000-2001 की है जब मैं दिल्ली मे था। दिल्ली मे उतनी भीड़ नही थी लेकिन एक कमरे मे पांच जना रहते थे ताकि किराया का भार अधिक ना पड़े। दस बाई आठ का कमरा मे खाना  बनाने का जगह और कपड़े रखने का जगह भी बनाया हुआ था। पूरी बिल्डिंग मे दो शौचालय थे जो कॉमन थे। सुबह जल्दी उठना पड़ता था ताकि लाइन ना लगना पड़े। साथ ही शौचालय जाम भी हो जाता था जिसे खुद ही साफ करना पड़ता था। उस वक्त मैं जहाँ था वहां दुर्गंध मे ऐसी लाखों जिंदगियां थी। मेरा रोजगार का सुरुआती दौर था जिसमे मैं ने करीब एक डेढ़ वर्ष गुजारे और फिर चेन्नई चला गया और वहां भी कमोवेश यही आलम था। हलांकि वहां सफाई थी और कमरे मे भीड़ कम थी परंतु एक या दो वाला फार्मूला वहां भी नही था। मुझे नही पता अब शायद चरित्र बदला होगा मकान का और शायद एक कमरे मे दो जना से अधिक नही रहने की परंपरा का विकास हुआ होगा। लेकिन मेरे कई रिश्तेदार मित्र आज भी