क्या बुढ़ापे का सहारा बनेंगे प्रशांत पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव ने थामा प्रशांत किशोर का दामन

 



न्यूज़ डेस्क पटना

पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव आज से जन स्वराज के हो गए है। कभी लालू प्रसाद यादव को जूनियर बोलने वाले देवेंद्र आज प्रशांत किशोर को अपना राजनितिक गार्जियन मानने को तैयार है। किसी वक्त में उनका नाम बिहार के बड़े नेताओं में शुमार होता था खैर यह वक्त वक्त का बात है कहते है वक्त सबसे बड़ा बलवान होता है। यह लोकोक्ति यहाँ सही और सटीक लगा तो लिख दिये। देवेंद्र प्रसाद यादव को आजकल राजनीतिक गलियारो में जनता फूंका हुआ कारतूस कहने लगे हैं। हालांकि की लोगों का क्या हैं वे तो यह भी कहते हैं कि जब देवेंद्र प्रसाद यादव धारा की राजनीति करते हैं तो उनसे अधिक मजबूत नेता सीमांचल और मिथिलांचल के मध्य में कोई नहीं हैं। साथ ही कुछ राजनितिक जानकार मानते है देवेंद्र प्रसाद यादव में धैर्य कमी है। नितीश कुमार के तरह पलटना, बार बार राजनितिक दल बदलना, किसी एक पार्टी के प्रति समर्पित नहीं होना, उम्र का ढलान व जनता के बिच अपना कमजोड़ पकड़ वाले नेताजी करें भी तो क्या करें। उनके गुरुदेव कर्पूरी जी कहते थे राजनितिक व्यक्ति कभी सोता नहीं है और RJD के राजकुमार तेजस्वी उन्हें लोरी सुनाकर सुलाना चाहते थे। यह संभव नहीं हुआ क्योकि देवेंद्र प्रसाद यादव झंझारपुर लोकसभा से चुनाव लड़ना चाहते थे और टिकट के आस में महीनों पटना के लालू दरबार में बैठे रहे लेकिन कल का नेता मुकेश सहनी को तीन लोकसभा सीट दे दिया जिसमे झंझारपुर भी शामिल था। जबकि मुकेश सहनी जिस मल्लाह जाती से आते है उस जाती का एक बड़ा बर्ग उन्हें वोट नहीं करता है। साथ ही मुकेश सहनी अपने जाती को टिकट भी नहीं देते है। भला देवेंद्र प्रसाद यादव को यह कहाँ पसंद आने वाला था। दे दिया बयान, लगा दिया बड़ा आरोप और परिणाम भी इण्डिया गठबंधन को भुगतना पड़ा। गठबंधन को लोकसभा चुनाव में मिथिलांचल व सीमांचल में इज्जत बचाने के लिए धोती भी काम नहीं आया। हम यह नहीं लिख रहे है की देवेंद्र प्रसाद यादव के महज एक बयान की वजह से मिथिलांचल व सीमांचल में गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। उनके वयान को घर के किसी कोने में चादर से ढक दें और भूल जाए लेकिन यह पब्लिक है सब जानती है। बिहार के इस पब्लिक ने सच्चाई को तलासना सुरु किया तो देखा पूर्णिया में राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव जैसे मजबूत पीआर वाले नेता की जगह जदयू की बागी बीमा भारती को टिकट दिया गया, सहरसा सुपौल पूर्णिया समेत मिथिलांचल में कांग्रेस को एक भी टिकट नहीं मिला अली असरफ फातमी को ब्राह्मण बहुल क्षेत्र मधुबनी से चुनावी मैदान में उतारना ललित यादव को दरभंगा में गोपालजी ठाकुर के विरुद्ध खड़ा करना झंझारपुर को मुकेश सहनी के खाते में डालकर आरएसएस से जुड़े सुमन कुमार महासेठ को टिकट देना सीतामढ़ी में देवेश चंद्र ठाकुर के सामने कमजोड़ उम्मीदवार अर्जुन राय को उतारना जनता को पसंद नहीं आया। हेलीकॉप्टर में तेजस्वी मछली खाते रह गए इधर जनता ने उन्हें जमीन पर उतार दिया। बिल्कुल वैसे ही जैसे शाहनवाज हुसैन जब फ्लाइट में बैठे थे तो मंत्री थे और जब फ्लाइट लैंड किया और वे जब जमीन पर उतरे तो वे मंत्री नहीं रहे थे। RJD भी मुस्लिम यादव समीकरण के सहारे लोकसभा का नैय्या पार नहीं लगा पाई। लोकसभा चुनाव का अध्याय समाप्त होने के बाद जगे हुए नेताओं को विधानसभा चुनाव की दावत में पक रही बिरियानी की खुसबू आने लगी। भादव के इस महीना में ना तो कोई पूजा है और ना ही सावन में शाकाहार बनने का राजनितिक दवाव फिर मांसाहारि बिरियानी को राजनेता कैसे छोड़ सकते है। वर्तमान राजनितिक दौर में भाजपा सुशिल मोदी के कमी को पूरा नहीं कर पा रही है और नरेंद्र मोदी का चमक फीका पड़ने की  वजह से अंदरखाने में राजनितिक अस्थिरता बनी हुई है। जदयू के समीकरण में अतिपिछड़ा को छोड़कर कोई फिट नहीं बैठता है। रही बात राजद की तो यहाँ बिना राजकुमार को खुश किये हुए टिकट मिलना मुश्किल है। कांग्रेस के पास अपना कोई जनाधार नहीं है। बाम दल में नए लोगों के एंट्री पर कोई ख़ास फोकस नहीं किया जाता है। ऐसे में प्रशांत किशोर एक मोटा आसामी के तौर पर बिहार की सियासत में उभरे है। यह मोटा आसामी खुद को जेपी यानी जयप्रकाश नारायण का अवतार घोसित करना चाहते है। जेपी का राजनीति में पुनः वापसी तत्कालीन बिहार सरकार के विरुद्ध हुई थी जिन्होंने बाद में चलकर भारत के बड़े राजनितिक आंदोलन का नेतृत्व किया था और तत्कालीन इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। जेपी ने कभी राजनितिक पद को महत्व नहीं दिया कुछ उसी तरह प्रशांत किशोर भी बार बार यह दावा करते है की वे पद नहीं लेंगे जनता तय करेगी किसे पंचायत अध्यक्ष किसे प्रखंड अध्यक्ष किसे जिला प्रदेश और राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना है। फिर कमिटी तय करेगी किसे विधायक किसे सांसद बनना है। बिहार के राजनितिक मिजाज को देखे तो आपको साफ़ साफ़ दिखेगा की मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग जातिये व सामाजिक गठबंधन में खुद को सुरक्षित महसूस करते है और उससे बाहर निकलने को वे तैयार नहीं है। ऐसे में एक बड़ा सवाल है क्या सिर्फ गणित और छोटे छोटे राजनितिक छत्रप के सहारे प्रशांत किशोर बिहार के राजनीति में एक बड़ा हलचल पैदा कर पाएंगे? क्या वे कुछ नामचीन लोगो, जनता पर हुकूमत करने वाले रिटायर्ड अधिकारियों। गायक गायिकाओं और फुके हुए कारतूस के सहारे केंद्र की राजनीति का सपना पूरा कर पाएंगे? आंदोलन की धरती बिहार के राजनितिक गलियारों में इस तरह के कई और उठा पटक  वर्षो में देखने को मिलेगा। 

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