न्यूज डेस्क पटना
आज बात समाजवादी की धरती कहे जाने वाले विधानसभा क्षेत्र फुलपरास की करते है। क्यों कहा जाता है फुलपरास को कर्पूरी का कर्मभूमि? प्रधानमन्त्री पद पर रहते हुए इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, एच डी देवगौड़ा का रहा है इस धरती से लगाव। हरियाणा के पूर्व राजयपाल धनिक लाल मंडल, देवेंद्र प्रसाद यादव, मंगनी लाल मंडल जैसे नेताओं का रहा है कर्मभूमि। क्यों बदनाम हुआ क्राइम के पनाहगार के रूप में यह क्षेत्र? फुलपरास के राजनीती का असर सीमांचल और मिथिलांचल को कितना करता है प्रभावित? बात पंचायत से नगर पंचायत तक के सफर का भी करेंगे ? बात शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार की भी होना चाहिए।
फुलपरास को समाजवाद का धरती कहा जाता है। यहाँ समाजवाद की जड़े वटबृक्ष की तरह फैली हुई है। इस वटबृक्ष को सींचने में डॉ लोहिया, कर्पूरी सरीखे समाजवादी ने अपना खून पसीना बहाया है। वटबृक्ष की छाँव इतनी शीतल जहाँ प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, एच डी देवगौड़ा, भी आने को विवश हो गए। अतिपिछड़ा की राजनीति से उभरे धनिक लाल मंडल विधानसभा से राजपाल तक का सफर तय किये। मंगनी लाल मंडल इसी क्षेत्र से निकलकर धानुक जाती के एक बड़े नेता बनकर बिहार में उभरे। इस क्षेत्र से कोई बड़ा क्रिमिनल नहीं होते हुए भी क्राइम का सेफ जोन के रूप में जाना जाता है। इसका सबसे प्रमुख कारण है कोशी का दियरा क्षेत्र जहाँ क्रिमिनल को छुपने के लिए सबसे सुरक्षित स्थान है।
आज चर्चा फुलपरास के राजनीति की करते है जहाँ वर्ष 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर काशीनाथ मिश्रा चुनाव जितने में कामयाब रहे। उन्होंने पांच वर्षो तक बिहार विधानसभा में फुलपरास का नेतृत्व किया। वक्त ने 1957 में करवट ली और यहाँ से इंडियन नेशनल कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदल कर रशिक लाल यादव को बनाया। राशिक लाल यादव कांग्रेस के भरोसे पर खड़े उतरे उन्होंने 1957 का चुनाव तो जीता ही साथ ही लगातार दूसरी बार 1962 का चुनाव भी जितने में कामयाब रहे। उनके जीत के इस सिलसिले को संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार धनिक लाल मंडल 1967 में रोकने में कामयाब रहे। धनिक लाल मंडल लगातार दूसरी बार 1969 में भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। हालाँकि पार्टी ने 1972 में उत्तम लाल यादव को टिकट थमाया और वे जितने में कामयाब रहे।
वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सहारे पहली बार देवेंद्र प्रसाद यादव विधानसभा की दहलीज पर पहुंचे। 1977 में बिहार में एक बड़ा राजनितिक उलटफेर हुआ और पहली बार गैर कॉंग्रेसी सरकार बनी। कर्पूरी ठाकुर को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया। उस वक्त कर्पूरी ठाकुर समस्तीपुर से संसद थे। वे चाहते तो विधान परिषद के सदस्य बनकर मुख्यमंत्री पद पर रह सकते थे लेकिन उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ने का निर्णय लिया और पहली बार विधानसभा का चुनाव जीतने वाले देवेंद्र प्रसाद यादव ने अपने पद से त्यागपत्र देकर उन्हें फुलपरास से चुनाव लड़ने का निमंत्रण दिया। कर्पूरी ठाकुर को भारी मतों से जनता ने जीता कर सदन भेजा।
जनता पार्टी ने 1980 में सुरेंद्र यादव को अपना उम्मीदवार बनाया और वो भी जीतने में कामयाब रहे। जनता पार्टी के विजय रथ को 1985 में हेमलता यादव रोकने में कामयाब रही। हेमलता यादव इंडियन नेशनल कांग्रेस के दामन थाम कर सदन पहुंचने में कामयाब रही। 1990 में जनता दल के चक्र पर सवार होकर राम कुमार यादव सदन पहुंचे।
1995 में इंडियन नेशनल कांग्रेस का दामन थाम कर देव नाथ यादव चुनाव जीतने में कामयाब रहे। वर्ष 2000 में राम कुमार यादव एक बार फिर जनता दल यूनाइटेड के सहारे चुनाव जीतने में कामयाब रहे। लेकिन उनके विजय रथ को 2005 में हुए दोनों ही चुनाव में देव नाथ यादव ने पूर्णतया रोक कर रख दिया। वे समाजवादी साइकल के सहारे सदन में पहुंचने में कामयाब रहे। वर्ष 2010 व 2015 में उनके स्थान पर उनकी पत्नी गुलजार देवी चुनावी मैदान में उतरी और लगातार दस वर्षो तक जदयू के तीर को मजबूत करती रहीं।
2020 का चुनाव शीला मंडल के नाम रहा उन्होंने पहली बार राजनीति में कदम रखा और चुनावी जीत हासिल की। वे फिलहाल बिहार सरकार में मंत्री है।
चर्चा करेंगे देवेंद्र प्रसाद यादव का फुलपरास के विकास में क्या है योगदान? चर्चा करेंगे धनिक लाल मंडल ने कितना किया अतिपिछड़ा के विकास के लिए काम? मंगनी लाल मंडल के कामों का करेंगे समीक्षा? अगले भाग में चर्चा करेंगे कोशी, कमला, बलान और गंडक समेत सप्त कोशी के प्रलय की। शिक्षा स्वास्थ्य का हाल ए बयां पर करेंगे चर्चा। पंचायत से नगर पंचायत बनने पर कितना हुआ है विकास? चर्चा करेंगे 2025 विधानसभा चुनाव का कौन है बड़ा दावेदार?
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