न्यूज डेस्क पटना
परशुराम के तपस्थली, वाचस्पति का टीका, कन्दर्पीघाट के युद्ध का मैदान, कार्णाट राजवंश की राजधानी, 1778 से 1785 तक खण्डवाला राजवंश की राजधानी, पंजीप्रथा की शुरुआत करने वाला क्षेत्र, पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा की कर्मभूमि, कांस्य के व्यापार के लिए जाना जाने वाले इस विधानसभा के नाम के पीछे एक रोचक कहानी है, कहते है की मोहम्मद गोरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान के पराजय के बाद चंदेल राजपूत सरदारों ने यत्र तत्र अपना ठिकाना बना लिया और इसी क्रम में महोबा के चंदेल राजपूत सरदार जुझार सिंह ने निर्जन जगह पाकर झंझारपुर में अपना डेरा जमाया। किंवदंति है कि जुझार सिंह के नाम से इस जगह का नाम जुझारपुर पड़ा जो धीरे धीरे झंझारपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। झंझारपुर कई वर्षो तक एक ही परिवार का राजनितिक ठिकाना रहा यहां 35 वर्षो तक कांग्रेस का गढ़ रहा है। नगर पंचायत से नगर परिषद् तक के सफर पर करेंगे चर्चा-----
1952 के विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस उम्मीदवार कपिलेश्वर शास्त्री ने चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा के दहलीज पर पहला कदम रखा। 1957 में देवचन्द्र झा 1962 में हरिश्चंद्र झा व 1967 में हरिनाथ झा ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के विजय रथ को निरंतर आगे बढ़ाया। इंडियन नेशनल कांग्रेस के इस रथ को 1969 में संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार रामपाल चौधरी रोकने में कामयाब रहे। रामपाल चौधरी ने डगमगाते हुए सरकार के साथ तीन वर्षो तक विधानसभा में झंझारपुर का नेतृत्व किया।
1972 का चुनाव इंडियन नेशनल कांग्रेस के बैनर तले डॉ जगन्नाथ मिश्रा जीतने में कामयाब रहे। उनके जीत का शिलशिला 1977,1980,1985 व 1990 तक अनवरत रूप से चलता रहा। इस दौरान वे तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1995 में जनता दल के सहारे रामअवतार चौधरी विधायक बनने में कामयाब रहे।
जनता दल से अलग हुए राष्ट्रीय जनता दल ने 2000 में एंट्री मारी और लालटेन के सहारे जगदीश नारायण चौधरी को मैदान में उतार दिया। जनता ने जगदीश नारायण चौधरी को भरपूर प्यार दिया और जीत का सर्टिफिकेट थमा कर सदन में भेज दिया।
वर्ष 2015 में उनके विजय रथ को गुलाब यादव रोकने में कामयाब रहे। वे लालटेन के सहारे मैदान में उतरे थे। जनता ने गुलाब को गुलाबी मुस्कान के साथ सदन भेजा।
वर्ष 2020 में इस सीट को एक बार फिर से नीतीश मिश्रा जीतने में कामयाब रहे उनके सामने सीपीआई उम्मीदवार कहीं लड़ाई में नजर नहीं आये।
2025 विधानसभा चुनाव के तैयारियों के मध्य हम जानेंगे दर्जनों धार्मिक स्थल की क्या है स्थिति? मिथिला का गौरव कंदर्पी घाट का हाल ए बयां। कर्नाट वंश के राजधानी का कितना हुआ है विकास? दुनिया के सबसे पुरानी पंजी का क्या है हाल? कांस्य की नगरी कहे जाने वाले झंझारपुर के व्यवसाय का कितना हुआ है विकास? समृद्धि इतिहास के धनी झंझारपुर के शिक्षा स्वास्थ्य और पर्यटन के विकास की हम चर्चा जरूर करेंगे। चर्चा हम झंझारपुर के नगर पंचायत से नगर परिषद् तक के सफर पर भी करेंगे। राजनीति का सियासी सफर जारी है -----
0 Comments