मधुबनी विधानसभा के 73 वर्षों का सियासी सफर



न्यूज़ डेस्क पटना 


25 वर्षो से एक ही परिवार के पास है सत्ता। 25 वर्षो तक जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी का रहा है कब्ज़ा। कभी कांग्रेस के टिकट पर बिहार के एकलौते मुस्लिम मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर मधुबनी विधानसभा से लड़ने आये थे चुनाव। गड़वाड़झाले के आरोप से लिपटा मिला था जीत। किन गलियों में घूम रहा है मधुबनी का विकाश।


आज के राजनितिक सफरनामा में बात मधुबनी विधानसभा की करते है। वर्ष 1952 में जब पहली बार मधुबनी विधानसभा का चुनाव हुआ तो इंडियन नेशनल कांग्रेस ने हरी नाथ मिश्रा को अपना उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में हरी नाथ मिश्रा मधुबनी विधानसभा से चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराये। 1957 में राजनीति ने करवट लिया स्वतंत्र उम्मीदवार रामकृष्ण महतो यहाँ से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। हालांकि की बाद के दस वर्षो तक कांग्रेस के उम्मीदवार बृज बिहारी शर्मा और सफीकुल्लाह अंसारी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 


इसी विधानसभा क्षेत्र से सूर्य नारायण सिंह दो बार विधायक बनने में कामयाब रहे। हालांकि सूर्य नारायण सिंह के हत्या के बाद हुए चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे। विपक्ष ने अब्दुल गफूर के जीत में कई गड़वाड़झाले का आरोप लगाया था। जिला मुख्यालय युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया था तत्कालीन कांग्रेस के एक बड़े नेता को घंटो तक एक रेलवे यार्ड में छिपना पड़ा था। इस चुनाव में अब्दुल गफूर के विरुद्ध सूर्य नारायण सिंह की पत्नी चन्द्रकला देवी चुनाव लड़ रही थी। अब्दुल गफूर बिहार के एकलौते मुस्लिम मुख्यमंत्री हुए है।



वर्ष 1977 में जनता पार्टी ने अपना खाता खोला और दिगंबर ठाकुर यहाँ से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में राजकुमार महासेठ ने जनता पार्टी के टिकट पर विधानसभा का सफर तय किया लेकिन इस सफर को 1985 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की उम्मीदवार पदमा चौबे ने रोक दिया। पदमा चौबे 10 वर्षो के पश्चात यह सीट जनता पार्टी के खाते से छीन कर फिर से एक बार कांग्रेस की झोली में लाने में कामयाब रही थी। वक्त ने करवट लिया और वर्ष 1990 में एक बार फिर राजकुमार महासेठ ने यह चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जीता जबकि तीसरी बार 1995 में वे जनता दल के सहारे सदन में पहुंचे।



हालांकि बाद के 15 वर्षो तक भारतीय जनता पार्टी के रामदेव महतो का इस सीट पर कब्ज़ा रहा। भारतीय जनता पार्टी के कब्जे से एक बार फिर 2015 में समीर कुमार महासेठ यह सीट छीनने में कामयाब रहे। दूसरी बार फिर समीर कुमार महासेठ पर राजद ने 2020 में भरोसा जताया और समीर कुमार महासेठ इस भरोसे को बरकरार रखने में कामयाबी हासिल किये।  



2025 विधानसभा चुनाव का ट्रेलर जारी हो चूका है तो चर्चा मधुबनी के विकास का करना जरुरी हो जाता है ।  अगले भाग में जानेंगे मधुबनी विधानसभा में शिक्षा का स्तर कैसा है। हाल ए बयां वाटसन स्कूल का हाल ए बयां सूरी हाई स्कूल का। हाल ए बयां शिवगंगा बालिका विधालय व मेनन बालिका विधालय का। हाल ए बयां नगर परिषद से नगर निगम बन जाने तक के सफर और बदइंतज़ामी का. हाल ए बयां सदर अस्पताल मधुबनी का जो सिर्फ रेफर सेंटर बन कर रह गया है। हाल ए बयां व्यूरोकैट और भ्रष्टाचार का। राजनीति का सियासी सफर जारी है -----

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