राहुल झा : बिहार के मधुबनी जिला अंतर्गत बेनीपट्टी प्रखंड के उच्चैठ में सिद्घपीठ उच्चैठ भगवती का मंदिर अवस्थित है. इस मंदिर का एेतिहासिक महत्व है, यहीं महान कवि कालिदास को माता काली ने वरदान दिया था और मूर्ख कालिदास मां का आशीर्वाद पाकर ही महान कवि के रूप में विश्व विख्यात हुए. सिद्घपीठ पर काले शिलाखंड पर देवी की मूर्ति बनी हुई है. यहां मां सिंह पर कमल के आसन पर विराजमान हैं. माता का सिर्फ कंधे तक का हिस्सा ही नज़र आता है. सिर नहीं होने के कारण इन्हें छिन्नमस्तिका दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है. माता के मंदिर के पास ही एक श्मशान है जहां आज भी तंत्र साधना की जाती है. माना जाता है की यहाँ छिन्न मस्तिका माँ दुर्गा स्वयं विराजमान रहती हैं और यहाँ जो भी आता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. लोक मान्यता है कि उच्चैठ भगवती से जो भी भक्त श्रद्घा पूर्वक याचना करते है मां उसे अवश्य पूरा करती हैं. इसलिए इन्हें दुर्गा के नवम रूप सिद्घिदात्री और कामना पूर्ति दुर्गा के रूप में भी लोग पूजते हैं. भगवान श्री राम भी जनकपुर की यात्रा के समय उच्चैठ पहुंचे थे. प्राचीन मान्यता है कि इसके पूर्व दिशा में एक संस्कृत पाठशाला थी और मंदिर तथा पाठशाला के बीच एक विशाल नदी थी. महामूर्ख कालिदास अपनी विदुषी पत्नी विद्दोतमा से तिरस्कृत होकर माँ भगवती के शरण में उच्चैठ आ गए थे और उस विद्यालय के आवासीय छात्रों के लिए खाना बनाने का कार्य करने लगे. एक बार भयंकर बाढ़ आई और नदी का बहाव इतना तेज था की मंदिर में संध्या दीप जलाने का कार्य जो छात्र किया करते थे, वो सब जाने में असमर्थ हो गए. कालिदास को महामूर्ख जान उसे आदेश दिया गया कि आज शाम वो दीप जला कर आये और साथ ही मंदिर की कोई निशानी लगा कर आये ताकि सबको विश्वास हो सके कि वो मंदिर में पंहुचा था. इतना सुनते ही कालिदास झट से नदी में कूद पड़े और किसी तरह तैरते-डूबते मंदिर पहुंच कर दीपक जलाया और पूजा अर्चना की. अब मंदिर का कुछ निशान लगाने की बारी थी ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि उन्होंने दीप जलाया. कालिदास को कुछ नहीं दिखा तो उन्होंने जले दीप के कालिख को ही हाथ पर लगा लिया. अब निशान बनाने के लिए माँ भगवती के साफ मुखमंडल पर कालिख लगाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तभी माता प्रकट हुई और बोली मैं तुम्हारी भक्ति भावना से खुश होकर तुम्हें वरदान देना चाहती हूँ. कालिदास ने अपनी आपबीती सुनाई कि कैसे मूर्ख होने के कारण पत्नी विद्योतमा ने उसे तिरस्कृत कर भगा दिया. इतना सुनकर देवी ने वरदान दिया कि आज सारी रात तुम जो भी पुस्तक स्पर्श करोगे तुम्हे कंठस्थ हो जाएगा. जिसके बाद कालिदास लौटे कर आये और पाठशाला की सभी किताबों को स्पर्श कर डाला. जिसके बाद वो आगे चलकर एक विद्वान कवि बने और अभिज्ञान शाकुंतलम् , कुमारसंभवम्, मेघदूतम् आदि की रचना की. आज भी वो नदी, उस पाठशाला के अवशेष मंदिर के निकट मौजूद है. मंदिर प्रांगण में कालिदास के जीवन सम्बंधित चित्र चित्रांकित हैं.
उच्चैठ भगवती स्थान में सालों भर भक्तों का आना जाना लगा रहता है लेकिन नवरात्र के मौके पर यहां भारी संख्या में लोग माता के दर्शनों के लिए आते हैं. इस अवसर पर बलि प्रदान और विशेष पूजा-पाठ का आयोजन होता है. वहीं हर रविवार को उच्चैठ स्थान पर भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है.
कैसे पंहुचे उच्चैठ स्थान
इस स्थानों से बस और टैक्सी से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है. उच्चैठ भगवती स्थान मधुबनी मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर है.
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मधुबनी से सड़क मार्ग से होते हुए आप 20 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद बेनीपट्टी पंहुचेंगे. जहां से 5 किलोमीटर की दूरी पर उच्चैठ भगवती स्थान स्थित है. मधुबनी यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है.
मधुबनी से सड़क मार्ग से होते हुए आप 20 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद बेनीपट्टी पंहुचेंगे. जहां से 5 किलोमीटर की दूरी पर उच्चैठ भगवती स्थान स्थित है. मधुबनी यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है.
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