सत्ता के संग्राम में आखिर क्यों नहीं टिक पाए तेजस्वी और राहुल?




सत्ता के संग्राम में आखिर क्यों नहीं टिक पाए तेजस्वी और राहुल ?

बिहार चुनाव पर सबकी नजर टिकी हुई थी। नरेन्द्रे मोदी के अंत होते राजनीति को कुछ विशेषज्ञ देख रहे थे, वहीं कुछ नितीश कुमार के बुढ़ापे की आखिरी जंग के तौर पर इस चुनाव को देख रहे थे। इस लड़ाई को दिलचस्प बनाने के लिए प्रशांत किशोर ने जबरदस्त मेहनत किया था। बिहारी अस्मिता को बचाने के लिए उन्होंने एक लम्बी लड़ाई लड़ी किन्तु चुनाव का समय नजदीक आते आते उन्हें लग गया उनका तरकस में रखा सारा तीर निशाने से चुकता जा रहा है। यही कारण था की वो  पुरे चुनाव के दौरान भीष्म के तरह मृत्यु सैय्या पर चले गए थे। न सम्राठ चौधरी पर उनका लगाया हुआ आरोप कोई काम आया न मंगल पांडे पर चलाये गए तीर, सब चूक गए।  संजय जायसवाल के ऊपर लगे आरोप भी उनके डूबते हुए जनाधार को बचा नहीं पाया । सोचा था अशोक चौधरी के बहाने नीतीश कुमार को दागदार साबित कर देंगे लेकिन नीतीश के चाल में वे खुद उलझ कर रह गए। जदयू ने अशोक चौधरी को ऐसे इग्नोर किया जैसे वो  बिहार के सियासत में है ही नहीं। युवाओं के दिलो पर राज करने वाले प्रशांत को महिलाओं ने ऐसा दिल तोड़ा की उन्हें उठने में शायद काफी वक्त लगे।  नीतीश  कुमार ने संजय झा के हाथों से कमान लेकर ऐसी लड़ाई लड़ी की आज कुंवर सिंह याद आ गए। हालांकि आज लोग नीतीश- मोदी के जोड़ी को तरजीह दे रहे है। किन्तु धरातल पर यह लड़ाई कुछ और ही दिखती है। गोदी मीडिया पर चेहरा चमकाने के लिए पहुंचे विपक्ष के नेताओं ने बिहार की लड़ाई को आसान बना दिया। तेजस्वी यादव नहीं होते तो शायद यह लड़ाई  नीतीश-  मोदी की जोड़ी जीत नहीं पाती। गोदी मीडिया पूरा नैरेटिव सेट करने में कामयाब रही। चुनाव के दौरान पूरा विपक्ष इस नैरेटिव में उलझ कर रह गया । 

कैसे सत्तारूढ़ दल के बनाए पिच पर ढेर हुआ विपक्ष ? 
सरकार ने महिलाओं को जीविका के माध्यम से (10000) दस हजार रुपया दिया साथ ही छह महीने बाद दो लाख रुपया और भी देने का वादा किया। अब विपक्ष इस होड़ में लग गई  की हम उन्हें अधिक देने का वादा करके अपने ओर कैसे खीं लें। सरकार चाह कर भी हर घर में यह प्रचारित नहीं कर पाती की वो महिलाओं को दस  हजार मुफ्त में दे रही  है लेकिन विपक्ष हर घर तक यह संदेश पहुंचा दी की मौजूदा सरकार तो आपको सिर्फ दस हजार दी है वो भी कर्ज,लेकिन जब हमारी सरकार बनेगी तो सबसे पहले 14 जनवरी 2026  को 25000 (पच्चीस हजार) रुपया देंगे। मौजूदा  सरकार वृद्धा पेंसन 400 से बढ़ा कर 1100 रुपया कर दिया, विपक्ष से यहाँ भी चूक हुई और वो एकबार फिर से गलती कर बैठा और अपने  द्वारा घोषित पेंसन राशी को देने का वादा कर दिया। विज्ञान का एक नियम है रिवर्स किक बड़ा तगड़ा लगता है। जबकि NDA के किसी नेता का बयान दिखा दीजिए जिन्होंने प्रशांत किशोर के लगाए आरोप पर प्रतिक्रिया दिया हो या विपक्ष के किसी योजना पर टिप्पणी किया हो। गोदी एंकरों के बाजार में आते ही सभी बड़े नेता उन एंकरों के मदहोशी में ऐसे डूबे की फिर निकल नहीं पाए। जिस गोदी मीडिया को ज्यादातर लोग देखना पसंद नहीं कर रहे थे जनता फिर से उसे देखने लगे। गोदी मीडिया ने वही किया जो उनके आका चाहते थे। कहते है जब भाग्य साथ दे तो सबकुछ अच्छा होने लगता है कुछ ऐसा ही हुआ NDA के साथ। सत्ता को नजदीक आता देख वो अहंकार में चूर हो गए। 

कैसे चाचा के बिछाए  बिसात में फंसा भतीजा ? 
तेजस्वी यादव को लगने लगा वो  बिहार के भाग्य विधाता हैं । टिकट बंटवारे में बस वही किया जो उन्हें सूट करता था। वहीं नीतीश कुमार ने पूरा सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल करते हुए कमान खुद अपने हाथ में ले लिया। इस बार कांग्रेस भी टिकट बेचने के आरोप से खुद को बचा नहीं पायी। चुनाव के बीच में राहुल गांधी की विदेश यात्रा उनके चुनावी गंभीरता को दिखाता है। इस कड़ी में अमित शाह को ऐसे ही नहीं भाजपा का चाणक्य कहा  जाता है। उन्होंने भाजपा के हर उस अंतरकलह को ख़त्म करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई नतीज़तन पार्टी को होने वाले नुकसान से बचा लिया। जैसे मैथिली ठाकुर का विरोध कर रहे संजय सिंह से खुद अमित शाह ने बात किया और मना भी लिया । हालाँकि यदि अमित शाह संजय सिंह से बात नहीं करते तो शायद ही मैथिली ठाकुर का कोई बड़ा नुकसान हो पाता। वहीं फुलपरास विधानसभा में कांग्रेस से नाराज़ पूर्व कांग्रेस नेता ज्योति झा  से बातचीत किया , ऐसे हजारों उदाहरण आपको मिलेंगे जिससे अमित शाह ने खुद बात किया और उन्हें भाजपा के प्रति लॉयल बनाया। मेरा मानना है कि वो माइक्रो मैनेजमेंट के कुशल कारीगर हैं । एक ओर जहाँ अमित शाह का कुशल माइक्रो मैनेजमेंट था वहीं दूसरी ओर नीतीश कुमार का शोसल इंजीनियरिंग और तो और मोदी-योगी का हिन्दुत्व वाले तड़का के साथ एक बड़ा सरकारी तंत्र जिसके कंट्रोल में था गोदी मीडिया। वहीं गोदी मीडिया जिसके जाल में उलझ कर रह गया पूरा विपक्ष। जबकि विपक्ष भूल गया की उनका यह पॉपुलरटी यूट्यूरों के बदौलत है। हालत ऐसी हो गयी की गोदी मीडिया की पैनी नज़र यूट्यूबरों पर थी। जबकि विपक्ष ने एक बार फिर से मेनस्ट्रीम यानी गोदी मीडिया के पेज को जिंदा कर दिया और चुनाव हार कर चिंतन करने कहीं निकल गया ।

आखिर जेपी के चेले ने कैसे दी जेपी के चेले को पटकनी ?
विपक्ष अपनी सभाओं में भीड़ जुटाकर दंभ भरती रह गयी वहीं सत्तारूढ़ दल आँखों से सूरमा ही चुरा ले गए। आख़िर यह सब हुआ कैसे ? यह सवाल अगले पाँच वर्षो तक तेजस्वी और राहुल गांधी को चुभती रहेगी। यह सावल उन वर्करो को अधिक चुभेगी जिन्होंने अपने पड़ोसी से या अपने परिजन से मजह इस लिए लड़ लिए ताकि इस चुनाव में वो सत्ता को उखाड़ फेंकें और अपने नेताओं पर भरोसा कर लिए जो भरोसे के लायक नहीं निकले। सत्ता को बदलने के लिए कोई देवता नहीं आएंगे लेकिन देवताओं की तरह सोच रखने की सबसे ज्यादा जरुरत है। लोगों के प्यार को जागीर समझने वालों के लिए यह चुनाव एक बड़ा सबक है जिसे समझने की जरुरत है। याद कीजिए जेपी को जिन्होंने 1957 में सक्रिय राजनीति छोड़ दिया लेकिन पुनः 1974 में प्रचंड आंदोलन खड़ा कर  दिया और 1977 में मजबूत इंदिरा सरकार को उखाड़ फेंका। महागठबंधन चाहती है बिहार के युवा उन्हें रोजगार व नौकरी के नाम पर उन्हें वोट दे। वहीं  NDA उन्हें दिखाती रही कि ये वही लोग हैं जिनके सल्तनत में कारखाना बंद हो गए और लोग पलायन होने पर मज़बूर हुए । 

सत्ताधारी दल ने किसे बनाया विभीषण? 
सबसे बड़ी बात लालू प्रसाद यादव ने जिन्हें अपने अधिकार के लिए बोलना सिखाया NDA उन्हें ही आगे कर अपना ढाल बनाया । महागठबंधन के नेता आज भी अगरे और पिछड़े के नाम पर चुनाव जीतना चाहती है। जबकि NDA उनके स्टेंडर्ड लाइफस्टाइल में खुद के योगदान को गिनाती है। उनके बढ़ते हुए सामाजिक ओहदे को उन्हें दिखाने में आयना का काम करती है। गांव में सवर्णो के पलायन ने उन्हें जमीन के मालिक बनने का मौका दिया, जिसे वो खोना नहीं चाहते। उन्हें डर है जिस तरह सवर्ण कृषि के एक बड़े हिस्से के मालिक होने के बाबजूद लालू राज में पलायन कर गए उसी तरह उन्हें भी कहीं महागठबंधन के राज में पलायन ना करना पड़े। बिहार के इस चुनाव में NDA ने मतदाताओं के हर उस नब्ज को पकड़ने में कामयाबी हासिल की और एक एक मत को बटोर लिया। सत्ता के संग्राम में आरोप प्रत्यारोप चलते रहेंगे लेकिन चलते-चलते राजनितिक योद्धाओं को एक नसीहत जरूर मिली की सत्ता के सिंहासन को सिर्फ एक मुद्दे के सहारे हिला नहीं सकते।  

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