बिन्देश्वर चौधरी : अंधराठाढ़ी प्रखंड के देवहार गांव स्थित बाबा मुक्तेश्वरनाथ धाम अवस्थित है. शिवलिंग की चमक भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है. सावन में हजारों की संख्या में भक्त यहां पर रोज आते हैं. मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले बाबा मुक्तेश्वरनाथ धाम आने वाले भक्तों में विदेशों के भक्त भी शामिल होते हैं. बाबा उमेश झा के देखरेख में कई दशक से यहां नियमित रूप से पूजा-अर्चना होती रही है. सावन के प्रत्येक सोमवारी पर एकादश रुद्र का महाश्रृंगार अनुष्ठान में बड़ी संख्या में भक्त हिस्सा लेते हैं. पिपराघाट कमला नदी से कांवर में जल भर कर भक्त बाबा को अर्पित करते है. यहां पर महादेव 11 अलौकिक रूप में हैं. यहां पर पुरातत्व के अनुसार यह शिवलिंग 200 सौ वर्ष पूर्व से अधिक पुराने हैं. प्रत्येक सोमवार को पंचामृत, चन्दन आदि से इन शिवलिंगों का स्नान एवं श्रृंगार होता है. खासकर सावन की सोमवारी के शाम को यहां अदभुत छटा देखनो को मिलती है. यहां का महाप्रसाद खाने से शरीर के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. लोगों का मानना है की जो भक्त जिस कामना से यहां पर आते हैं. उनकी मनोकामना बाबा मुक्तेश्वरनाथ धाम पूरी करते हैं.
मिथिलांचल का यह प्रसिद्ध शिवालय बिहार राज्य के मधुबनी जिला अंतर्गत अंधराठाढ़ी प्रखंड के देवहार ग्राम में स्थित है. यह शिवधाम जिला मुख्यालय मधुबनी से 23 कि.मी. पूर्व, अंधराठाढ़ी प्रखंड से ९ कि.मी. और राज्य की राजधानी पटना से लगभग 166 कि.मी. की दूरी पर स्थित है. शिवरात्रि के बाद सावन में यहां पूजा-अर्चना करने वालों की भारी भीड़ लगी रहती है. बाबा मुक्तेश्वरनाथ धाम तक पहुंचने के लिए रिक्शा, ऑटो की सवारी की जाती है. हालांकि इस सड़क मार्ग होकर बसों का आवाजाही भी होता है. आसपास के गांव के लोग यहां पैदल चलकर ही पहुंचते हैं. बाबा मुक्तेश्वरनाथ धाम देश एवं राज्य के किसी भी कोने से यातायात के विभिन्न साधनों द्वारा जैसे सड़क, रेल मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है. मिथिलांचल के इस प्रसिद्ध शिवधाम/शिवालय पहुँचने का कई सड़क और रेल मार्ग है.
यह आधिकारिक वेबसाइट www.babamukteshwarnath.com श्री श्री 108 बाबा मुक्तेश्वरनाथ को समर्पित है. इस वेबसाइट की अभिकल्पना एवं विकास कार्य बाबा मुक्तेश्वरनाथ धाम मंदिर प्रबंधन सह विकास कमिटी के वेबसाइट विकास टीम द्वारा हिन्दू धर्म और ईश्वर भक्ति का प्रचार सह बाबा मुक्तेश्वरनाथ धाम मंदिर विकास कार्य के उद्देश्य से किया गया है. तथा इसका रखरखाव मंदिर प्रबंधन सह विकास कमिटी द्वारा किया जाता है. वेबसाइट को विभिन्न प्रकार के चित्र, भजन, वंदना, श्लोक एवं मन्त्र, आरती संग्रह, मंदिर में आयोजित होने वाले प्रमुख कार्यक्रमों के विवरण एवं मंदिर से जुडी अनेक प्रकार की प्रचलित एवं लोकप्रिय लोकमान्यताओं एवं कहानियों से सुसज्जित किया गया है.
भगवान परशुराम का तप-स्थली एवं मिथिलांचल का पंजी-प्रथा का उद्गम स्थल - बाबा मुक्तेश्वरनाथ धाम.
ऐसा माना जाता है कि बाबा मुक्तेश्वरनाथ धाम से जहाँ एक ओर मिथिलांचल की प्रसिद्द पंजी-प्रथा जुड़ी हुई है वहीं दूसरी ओर पुरातत्त्विक महत्त्व की अनेकानेक कलाकृतियाँ भी शोधार्थियों को अपनी ओर आकृष्ट कर रही हैं. महामहोपाध्याय परमेश्वर झा ने अपनी प्रसिद्द पुस्तक "मिथिलातत्त्व विमर्श" में देवहार ग्राम स्थित श्री श्री 108 बाबा मुक्तेश्वर नाथ महादेव मंदिर (मुक्तेश्वर स्थान) का उल्लेख करते हुए इसे मिथिलांचल के पंजी प्रबन्ध से संबद्ध माना है. उनके अनुसार सतघरा ग्राम जो कि मुक्तेश्वर स्थान से करीब एक किलोमीटर पश्चिमोत्तर में है वहां पर गंगौर मूल के ब्राह्मण हरिनाथ शर्मा रहते थे. हरिनाथ शर्मा बड़े प्रसिद्ध, दार्शनिक एवं स्मृति रचिता थे उनकी पत्नी प्रतिदिन देवहार ग्राम में स्थित बाबा मुक्तेश्वर नाथ महादेव के दर्शनार्थ जाया करती थीं. एक दिन गांव में अफवाह फैल गई की एक चंडाल ने मंदिर में जाकर उक्त ब्राह्मणी की सतीत्त्व को भग्न कर दिया किन्तु उस स्त्री का कहना था की वह चंडाल मंदिर में आया लेकिन एक साँप ने उसे काट लिया और वह मर गया और मैं पवित्र हूँ.
कथन पर विश्वास न कर समाज के लोगों ने निर्णय लिया कि उनका सतीत्त्व की परीक्षा लिया जाय. इस परीक्षा में धर्माध्यक्ष पंडित पीपल के पत्ते पर हाथ में आग की गोला देकर "नाहं चांडाल गामिनी" लिखकर उस स्त्री के तलहत्थी पर रखा गया पर स्त्री का तलहत्थी जलने लगा जिससे पुनः लोगों ने उसे पापिन कहना शुरू कर दिया परंतु वह स्त्री अपने उपर लगाए गए गलत आरोपों से छुटकारा पाने हेतु राजदरबार में गुहार लगाई. प्रधान धर्माधित रानी ने अपने समक्ष पुनः उस स्त्री के हाथ में पीपल के पत्ते पर आग का गोला रखने की व्यवस्था की किन्तु इस बार "नाहं स्वपति व्यतिरिक्त चांडाल गामिनी" लिखा गया इस बार हाथ नहीं जला फलतः उन्हें निर्दोष साबित किया गया.
सतीत्व परीक्षण की उक्त प्रक्रिया ने एक तथ्य की ओर स्पष्ट संकेत किया की उस स्त्री के पति हरिनाथ शर्मा स्वयं ही चांडाल हो गए हैं. इस अवसर पर अनुसंधान कराया गया जिसके उपरांत पता चला कि उनका विवाह अनाधिकार में हुआ है जिससे उन्हें चण्डालत्व प्राप्त हो गया है इस निर्णय के पश्चात् ही पंजी व्यवस्था को सुदृढ़ करने की उक्त सन 1310 ई. के आसपास का कही गयी है जिस समय मिथिलांचल पर महाराजा हरिसिंह देव का शासन स्थापित था. स्थानीय परंपरा के अनुसार महाराजा हरिसिंह देव ने इस व्यवस्था में विशेष लिखी तथा मुक्तेश्वर स्थान में ही अपना दरबार लगाया था. उनकी पत्नी विदुषी लखिमा ठकुराईन ने भी इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. स्थानीय लोगों में एक कथा और भी प्रचलित है (जो किवंदति है) कि परशुराम जी का आश्रम भी यहाँ स्थित था और वो यहाँ पर तपस्या करते थे जिसका प्रमाण 2008 में भी मिट्टी खुदाई के दौरान परशुराम जी के स्वरुप का एक अंग प्राप्त हुआ है जो वर्त्तमान में मंदिर में उपस्थित है.
ऐसा माना जाता है कि मुक्तेश्वर नाथ मंदिर का निर्माण लगभग 200 वर्ष पूर्व हुआ था. पुरातत्त्विक दृष्टि से मुक्तेश्वर स्थान एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थल है. यहाँ का शिवलिंग बड़ा ही अनोखा है. कुछ दशक पूर्व एक सन्यासी के द्वारा इसके खुदाई का काम करवाया गया था तो देखा की यह शिवलिंग नीचे जाने पर अत्यंत मोटा एवं विशाल होता गया जिससे खुदाई का काम बंद कर पुनः भरकर पूजा योग्य बना दिया गया. शिवलिंग को देखने से लगता है कि यह गुप्त कालीन है. मिट्टी खुदाई के दौरान एक अत्यंत ही सुन्दर गणेश एवं पार्वती की प्रतिमा भी मिली जो पार्वती मंदिर में अभी भी स्थापित है.
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