अयाची का अर्थ है जिसने कभी याचना नहीं किया, गरीबी में जीना मंजूर था पर हाथ फैलाना मंजूर नहीं था ! अयाची मिश्र इतने गरीब थे की उनके यहाँ जब पुत्र शंकर ने जन्म लिया तो प्रसव कराने वाली चमाइन को देने के लिए भी उनके पास कुछ नहीं था लेकिन अयाची मिश्र की पत्नी ने चमाइन से वादा किया की वह उनके पुत्र का पहला कमाई उसे दे देगी ! और उस चमाइन को अयाची मिश्र के पुत्र की पहली कमाई के लिए ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ा और महज पांच वर्ष के उम्र में ही अयाची मिश्र के पुत्र शंकर मिश्र को इनाम स्वरुप ढेरो स्वर्ण आभूषण एवं हीरे जवाहरात मिला !
पहला कमाई करोड़ो में
यह संपत्ति इतना था की इस पैसे से लोक कल्याण के लिए एक बड़ा तालाब खुदवा दिया गया ! वादा के अनुसार अयाची मिश्र की पत्नी ने वह सारा धन प्रसव कराने वाली चमाइन को दे दिया और चमाइन ने उस पैसे से एक तालाब खुदवा दिया ! यह तालाब आज भी चमैनियाँ पोखर के नाम से प्रशिद्ध है ! उस समय शंकर मिश्र महज पांच वर्ष के बालक थे ! बाल्य अवस्था में ही उन्होंने तत्कालीन महाराज को अपने स्वय के रचित कविता सुनाकर अचंभित कर दिया था और महाराज ने प्रसन्न होकर उन्हें ढेर सारा धन इनाम मे दिया था !अयाची मिश्र ने स्वयं कोई पुस्तक नहीं लिखा पर उसके द्वारा दिए गए शिक्षा से उनके पुत्र शंकर मिश्र ने महज पांच वर्ष के उम्र में कई रचनाये लिख दिया ! शंकर मिश्र का बालो हम जगतानंद श्लोक यहाँ के सभी लोगो के जुबान पर है !
चेन एडुकेशन की शुरुआत
अयाची मिश्र का डीह पंडौल प्रखंड के सरसोंपाहि गांव में अवस्थित है ! अयाची मिश्र ने शिक्षा के एक नयी पद्धति का शुरुआत भी किया था ! वे गुरुदक्षिणा में छात्रों से धन दौलत के वजाय दस अन्य छात्रों को शिक्षित करने का गुरुदक्षिणा मांगते थे ! चेन मार्केटिन आज भले ही सफल नहीं हो पर उस समय का यह चेन एडुकेशन काफी सफल हुआ था और इसका परिणाम है की यह गांव ने भारत ही नहीं विश्व स्तर के कई विद्वान् दिए है ! हालांकि इस भौतिक युग में अयाची मिश्र के बंसज परम्परा को नहीं निभाते है हमने अयाची मिश्र के बंसज जीवनाथ मिश्र से पूछा क्या आपलोग चेन एडुकेशन की परम्परा को निभा रहे है उन्होंने बड़े ही सहजता से कहा मुझे कोई संकोच नहीं है यह कहने में की आज ये परम्परा बंद हो चुका है पर आज से छह सौ वर्ष पूर्व जब यह परम्परा का शुरुआत हुआ था तो लोगों को इसका बहुत ही फायदा हुआ था कुछ गांव तो सौ प्रतिशत तक शिक्षित हो गए थे !
गुरु को समर्पित पुस्तक
जिसने कभी कोई पुस्तक नहीं लिखा पर शिक्षा ऐसा दिया की रचनाकार ने सारी रचनाये उन्हें समर्पित कर दिया ! शिक्षा की ऐसी पद्धति की शुरुआत किया की पूरा गांव शिक्षित हो गया ! आज अंग्रेजी के युग में लोग भले ही संस्कृत नहीं पढ़ते है पर उनकी पद्धति आज भी अनुकरणीय है ! सरकार आज कह रही है बच्चों के रिजल्ट का जिम्मेवारी शिक्षकों को लेना चाहिए परन्तु अयाची मिश्र के छात्र और पुत्र शंकर मिश्र ने इसे सैकड़ो वर्ष पूर्व ही सभी ज्ञान एवं दोष को गुरु को समर्पित कर दिया था उन्होने अपने सभी रचनाओं में लिखा है इस पुस्तक के सभी गुण और दोष मेरे पिता को जाता है ! क्योकि उन्होंने मुझे जो भी शिक्षा दिया मैं ने उसी शिक्षा के अनुरूप लिखा है !
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Jai Mithila, Jai Janki
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