सावन विशेष : अलौकिक हैं मंगरौनी के एकादश रूद्र महादेव


रंजित मिश्रा : सम्पूर्ण मिथिलांचल में सैकड़ों शिव मंदिर है. लेकिन मधुबनी के मंगरौनी गांव स्थित एकादश रूद्र मंदिर अपने शिवलिंग और उनकी स्थापना की विशेषता के कारण श्रद्धा व आध्यात्म का केंद्र बना हुआ है. राजनगर प्रखंड के मंगरौनी गांव स्थित एकादश रुद्र महादेव मंदिर अवस्थित है. वर्ष 1953 में प्रसिद्ध तांत्रिक मुनीश्वर झा द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई. यहां के एकादश स्वरूप काले ग्रेनाइट से बने शिवलिंग की चमक भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है. सावन में हजारों की संख्या में भक्त यहां पर रोज आते हैं. मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले एकादश रुद्र महादेव मंदिर आने वाले भक्तों में विदेशों के भक्त भी शामिल होते हैं. बाबा आत्माराम के देखरेख में कई दशक से यहां नियमित रूप से पूजा-अर्चना होती रही है. सावन के प्रत्येक सोमवारी पर एकादश रुद्र का महाश्रृंगार अनुष्ठान में बड़ी संख्या में भक्त हिस्सा लेते हैं. यहां पर कांचीपीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, जगरनाथ पीठाधीश्वर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती भी पहुंच चुके हैं.

जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दुरी पर स्थित इस प्रसिद्द एकादश रूद्र महादेव मंदिर की स्थापना प्रसिद्ध तांत्रिक मुनिश्वेर झा ने की थी. यहां पर महादेव 11 अलौकिक रूप में हैं. यहां पर तांत्रिक विधि से शिव के 11 लिंग रूपों का स्थापित किया गया है. सभी शिवलिंग काले ग्रेनाईट पत्थर के है. इन शिवलिंगों में महादेव, शिव, रूद्र, शंकर, नीललोहित, ईशान, विजय, भीम, देवदेव, भवोदभव व कपाली हैं. पुरातत्व के अनुसार यह शिवलिंग 200 सौ वर्षों से अधिक पुराने हैं. प्रत्येक सोमवार को पंचामृत, चन्दन आदि से इन शिवलिंगों का स्नान एवं श्रृंगार होता है. खासकर सावन की सोमवारी के शाम को यहां अदभुत छटा देखनो को मिलती है. यहां का महाप्रसाद खाने से शरीर के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. लोगों का मानना है की जो भक्त जिस कामना से यहां पर आते हैं, उनकी मनोकामना एकादश रूद्र महादेव पूरी करते हैं.


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कैसे पहुंचे
शिवरात्रि के बाद सावन में यहां पूजा-अर्चना करने वालों की भारी भीड़ लगी रहती है. जिला मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित एकादश रुद्र मंदिर जाने के लिए जिला मुख्यालय से सड़क मार्ग से जाया जा सकता है. मंदिर तक पहुंचने के लिए रिक्शा, ऑटो की सवारी की जाती है. हालांकि इस सड़क मार्ग होकर बसों का आवाजाही भी होता है. राजनगर सहित आसपास के गांव के लोग यहां पैदल चलकर ही पहुंचते हैं.

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