बीजे बिकास : मधुबनी जिले का एक ऐसा गांव जहां लोग नदी के रास्ते चचरी पुल के सहारे सालों भर जिंदगी के भागदौड़ में विवश होकर सरपट दौड़ते है. यह गांव अपनी बदहाली की दास्तान वर्षों से बांस के चचरी पुल के सहारे बयां कर रहा है. लेकिन दुर्भाग्य है कि ग्रामीणों के सहयोग से निर्मित यह चचरी पुल भी गुरुवार को बारिश के कारण जलस्तर बढ़ने से पानी के तेज बहाव में बह गया. मधुबनी मीडिया को एक एक्सक्लूसिव विडियो मिली है जो कि गुरुवार 6 जुलाई की है. वीडियो में आप यह साफ देख सकते है कि किस तरह से एक अधेड़ उम्र का बुजुर्ग जो हल्की बारिश में चचरी पुल पार करने के लिए पुल के सहारे आगे बढ़ता है. लेकिन कुछ दूर जाने के बाद ही उसे इस बात का एहसास होता है कि पानी के बहाव व जलकुंभियों के जमा होने के कारण चचरी पानी में बहने वाली है. जिसके बाद वह चचरी पुल पर तेजी से दौड़ना शुरू कर देता है. लेकिन अचानक उसका पैर चचरी के बीच आ जाता है और वह वहीं गिर जाता है. जिसके बाद मौके चचरी पुल के दूसरे छोड़ पर मौजूद कुछ बच्चें उस बुजुर्ग को बचाने के लिए आगे बढ़ते हैं लेकिन अचानक पानी के बहाव में तेजी आ जाने व चचरी पुल को टूटता देख बच्चें भी पीछे हो जाते हैं. उसके बाद चचरी पुल के बीच मे फंसा वह बुजुर्ग खुद को संभालते हुए ऊपर उठने का प्रयास करता हैं लेकिन वह फिर गिर जाता है. चचरी पुल के दोनों छोड़ पर लोगों की भीड़ हल्ला मचा रही थी. लेकिन ऐसी परिस्थिति में किसी को चचरी पुल पर आगे बढ़ना भी खतरा से कम नही था. लेकिन इसके वाबजूद भी बीच चचरी पुल पर फंसे बुजुर्ग ने एक बार फिर से प्रयास किया और खुद को उपर करते हुए आगे बढ़े, पुल को अत्यधिक हिलता देख उन्होंने खुद को उपर करते ही तेजी से अंतिम छोड़ के लिए दौड़ लगाई. लेकिन किस्मत ने उस बुजुर्ग का साथ दिया. जिंदगी और मौत के बीच चचरी पुल के सहारे जान बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे उस बुजुर्ग के चचरी पुल पार करते ही पुल का बीच का हिस्सा पूरी तरह टूटकर पानी में बह गया. अगर क्षण भर की देरी भी हो जाती तो बड़ी दुर्घटना घट सकती थी. हालांकि ऐसी घटनाओं से सिख लेने की जरूरत उन जनप्रतिनिधियों को है जो इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते है.
आपको बता दें की यह गांव मधुबनी जिले के बेनीपट्टी प्रखण्ड अंतर्गत आता है जिसका नाम करहारा हैं. अधवारा समूह की धौस नदी पर पक्का पुल नहीं रहने के कारण ग्रामीण चार माह नाव तथा आठ माह बास की चचरी पुल के सहारे अपना जीवन व्यतीत करने पर विवश है. गांव के लोग धौस नदी पर पुल की मांग को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों व प्रशासन से लेकर पटना तक आवेदन देकर गुहार लगा चुके हैं, लेकिन सरकार एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा अभी तक इस समस्या से निजात दिलाने के दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.
प्रखण्ड मुख्यालय से आठ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित यह गांव है धौस, डोरा एवं थुम्हानी नदी से घिरा हुआ है. विकास के लिए तरसते इस करहारा गांव को बेनीपट्टी मुख्यालय से जोड़ने वाली सड़क में धौस नदी पर पुल नहीं होने के कारण लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. सात हजार की आबादी वाले करहारा गाव में यादव, मुस्लिम, पिछड़ा तथा महादलित एवं अनुसूचित जाति की संख्या सर्वाधिक है. आजादी के साढ़े छह दशक बीत जाने के बाद भी करहारा गाव के लोग सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, टेलीफोन, यातायात, सिंचाई, रोजगार जैसे जीवन की मौलिक सुविधाओं की समुचित व्यवस्था से वंचित हैं. बाढ़ व सुखाड़ का दंश झेलना इनकी नियति बन गई है. गांव के अधिकाश: लोगों का जीवन यापन कृषि कार्यों पर आधारित है. यह गांव बाढ़ एवं बरसात के दिन करहारा गाव दो माह तक टापू बना रहता है, जहां घर से आने व जाने का नाव ही एक मात्र साधन रहता है. धौस नदी पर पुल बनने से 50 हजार की आबादी को जहा सीधा लाभ मिलेगा. वहीं करहारा, समदा, बिरदीपुर, सोहरौल, गुलड़िया टोल, उच्चैठ सहित एक दर्जन गाव का बसैठ से सीधा जुड़ाव हो जाएगा. लेकिन जनप्रतिनिधियों के उदासीनता के कारण हालात ऐसे हैं कि अपनी दुर्दशा पर रो रहे इस गांव के हालात का जायजा लेने भी कोई नही जाता है.
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जनप्रतिनिधियों के अनदेखी कारण आज भी पंचायत की आम आवाम इसे अपनी नियति मान विवशता की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं.
जनप्रतिनिधियों के अनदेखी कारण आज भी पंचायत की आम आवाम इसे अपनी नियति मान विवशता की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं.
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