साहित्यिक- सांस्कृतिक शून्य को साहित्यिकी ने बखूबी भरने का काम किया है


दिनाँक 18 फरवरी को साहित्यिकी का तीसवाँ वार्षिकोत्सव लक्ष्मीवती संस्कृत महाविद्यालय,सरिसब-पाही में आयोजित किया गया।इस समारोह की अध्यक्षता कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ शशिनाथ झा ने किया एवं मुख्य अतिथि थे निबन्धन सह विशेष विवाह पदाधिकारी,बिरौल डॉ भाष्कर ज्योति। कार्यक्रम का प्रारंभ वैदिक मंगलाचरण के साथ हुआ तथा स्वागत गीत श्री काशीनाथ झा किरण के स्वर में गाया गया।इस अवसर पर दो पुस्तकों का भी  लोकार्पण किया गया,पहला पण्डित श्री जीवानन्द ठाकुर द्वारा संकलित मैथिल डाक तथा दूसरा डॉ शान्तिनाथ सिंह ठाकुर द्वारा लिखित ग्रहणमाला।


                   स्वागत भाषण करते हुए साहित्यिकी के संरक्षक डॉ जगदीश मिश्र ने कहा कि सरिसब-पाही परिसर में तकरीबन आधी शताब्दी से व्याप्त साहित्यिक- सांस्कृतिक शून्य को साहित्यिकी ने बखूबी भरने का काम किया है। ये अकिंचन संस्था कुछ न‌ होते हुए भी आज अगर इस मुकाम पर पहुंची है कि मिथिला और भारतवर्ष में रहने वाला कोई भी मैथिली साहित्य अनुरागी इस नाम से अनभिज्ञ नहीं है तो इसके पीछे आप सभी सुधीजनों का सहयोग और संस्था के प्रति ममत्व का ही योगदान है।इस वर्ष का साहित्यिकी सम्मान ग्रहण करते हुए डॉ शान्तिनाथ सिंह ठाकुर ने कहा कि यह सम्मान ग्रहण करते समय हृदय भावविह्वल हो रहा है।मेरी रचनात्मक यात्रा में साहित्यिकी जितना योगदान अन्य किसी का नहीं। साहित्यिकी के समानांतर ही मेरी लेखन यात्रा भी चलती रही है और आज ये सम्मान पाकर कृतज्ञ महसूस कर रहा हूं।इस वर्ष का मुख्य आकर्षण साहित्यिकी युवा पुरस्कार ग्रहण करते हुए उर्जस्वी युवा रचनाकार श्री बालमुकुन्द ने कहा कि साहित्यिकी मेरे जीवन में ऐसे आया जैसे पेड़ में पत्ते आते हैं।आज जब समाज, साहित्य को बाजार और उपभोक्तावाद ने अपनी चपेट में ले रखा है, साहित्यिकी ने सफलतापूर्वक इस प्रवृत्ति का प्रतिरोध किया,जो उसके तीन दशकों से यात्रा से दृष्टिगोचर होता है। प्रथम युवा साहित्यिकी सम्मान पाकर अभिभूत हूं, जिम्मेदारी बढ़ गई है ऐसा महसूस हो रहा है। मेरे लेखन यात्रा को यह पुरस्कार सम्वर्द्धित और पुष्पित करेगी,ऐसा विश्वास है। 


                मुख्य अतिथि डॉ भाष्कर ज्योति ने कहा कि लोक सेवा आयोग की तैयारी के समय ही साहित्यिकी संस्था के विषय में जानकारी हो गई थी किन्तु आज इतने वरेण्य विद्वानों के समक्ष खुद को पाकर और साहित्यिकी जैसी संस्था में सहभागी होकर गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। मैथिली भाषा और साहित्य से मेरी पहचान गुम्फित होने के कारण जाने अनजाने में सम्मान का पात्र मैं बनता रहता हूं। साहित्यिकी को अनवरत ऐसे ही प्रगति पथ पर बढ़ने और नित्य नई उपलब्धियों के लिए शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं । अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉ शशिनाथ झा ने कहा कि एक संस्था के रूप में साहित्यिकी की यात्रा ऐतिहासिक रही है और मैं इस यात्रा का साक्षी रहा हूँ। इतने सारे महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन और साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधि को निरन्तर क्रियान्वित करते रहने के लिए मैं साहित्यिकी को साधुवाद देता हूँ। 


             अन्य वक्ताओं में डॉ शिवशंकर श्रीनिवास, डॉ रमण झा, डॉ अरविन्द सिंह झा, डॉ अतुलेश्वर झा, डॉ इन्द्रनाथ झा,श्री अमल झा आदि ने अपना मन्तव्य रखा। तकरीबन आधा दर्जन कवियों ने कविता गीत आदि का पाठ किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्था के अध्यक्ष डॉ विद्यानन्द झा ने तथा मंच संचालन डॉ अजीत मिश्र ने किया।इस अवसर पर डॉ केदारनाथ झा,श्री शैलेन्द्र आनन्द,श्री मलयनाथ मण्डण, डॉ सुनीता झा,श्री मनीष त्रिगुणायत, डॉ सत्येन्द्र कुमार झा,श्री तीर्थनाथ मिश्र,श्रीमती अपर्णा झा, श्रीमती निधि झा,श्री विक्की मण्डल आदि उपस्थित थे।

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