102वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी महानंद बाबू को आज भी याद है आजादी की वह पहली सुबह



न्यूज डेस्क पटना

हम आपको मिलवाने जा रहे है देश के आजादी की लड़ाई में महज 17 वर्ष के उम्र में जंगे आजादी की लड़ाई में कूदने वाले व अपने जीवन के 22महीने जेल में गुजारने वाले स्वतंत्रता सेनानी महानंद बाबू से,जिन्होंने अपनी जिंदगी का परवाह किए बिना आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। हरलाखी प्रखंड के पिपरौन गांव निवासी यदुनाथ मिश्र उर्फ महानंद बाबू आज भी अंग्रेजो के जुल्मों सितम की कहानी अपनी जुवानी सुनाते हैं। देश की आजादी के बाद खुशी में बांटे गए मिठाईयो का उस स्वाद को आज भी महसूस करते हैं। उनकी पहली लड़ाई1942 में करीब 17 वर्ष के उम्र में उमगांव बाजार से शुरू हुआ था। जहां कई गावों से आए क्रांतिकारियों की टोली ने अंग्रेजो के द्वारा बनाए गये हरलाखी पुलिस चौकी में पँहुच जमकर तोड़ फोड़ मचाई। एवं सभी मिलकर पुलिस चौकी में आगजनी कर  दी। इसके बाद तो मानो आजादी की लड़ाई लड़ना इनका दिनचर्या हो गया।हालांकि इनकी माता देव माया मिश्र के द्वारा बार-बार मना करने के बाद भी जंगे आजादी में शामिल होते रहे। जिसके बाद अंग्रेजो के द्वारा इनके उपर वारंट जारी कर दिया गया। गिरफ्तारी से बचने के लिए अपने साथियों के साथ हैदराबाद पँहुचे,जँहा वे आर्मी मे भर्ती हो गये. लेकिन वारंटी होने का भनक लगते ही वहीं से गिरफ्तार कर लिए गए जहां तीन महीने जेल में बंद रहने के बाद 19 महिने की सजा सुनाकर मधुबनी जेल भेज दिया गया। जब देश आजाद हुआ उस वक्त इनका उम्र करीब 18 वर्ष था।15 अगस्त 1947 की सुबह लोगों के बीच लड्डू बाटने लगे.जब लड्डू बांटने का कारण पूछा तो उन्हें बताया की आज देश आजाद हो गया है यह बताते हुए महानंद बाबु भावुक हो जाते हैं।पहली बार सन 1972 में स्वतंत्रता के 25वें वर्षगांठ पर स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी के हाथों एक ताम्रपत्र के साथ सेनानियों को 200 रुपये प्रति माह पेंशन सहित ट्रेन पास दिया गया.महानंद बाबू बताते है कि आज भी गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस पर झंडोत्तोलन करने का तीव्र इच्छा रहती है.पहले गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें आमंत्रित किया जाता था लेकिन अब कोई सूचना नही मिलती है.घर पर झंडोत्तोलन करते थे लेकिन शारिरिक रूप से कमजोर होने के कारण नही कर पा रहे है।

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