इस मुहल्ले में घूमकर देख लीजिये यकीन मानिये आप भी बोलेंगे हम आजाद भारत के गुलाम नागरिक है ! और इस गरीबी के गुलामी मे जकड़े लोगों को देखकर मन बोझिल हो गया, रात के एक बज रहे है पर आँखों से नींद कोसों दूर हो गया है ! शरीर थक कर चूर हो चूका है पर मन की बैचेनी ने सीने की आग को जला रखा है और यही बैचैनीयत की बोर्ड पर अँगुली चलाने को मजबूर कर रहा है ! लगता है शब्द कोष कही दूर गगन में चला गया है पर उन शब्दों का अहसास लिखने को मजबूर कर दिया है ! कल तक मैं खुद को समाजिक कहता था लेकिन आज मुझे उस शब्द पर सर्मिंदगी महसूस हो रहा है ! यकीन मानिये आज मैं ने समाज के उस रूप को देखा जिसके बाद मुझे यह कहने में थोड़ी भी झिझक नहीं है की हम आज भी आजाद भारत के गुलाम नागरिक है ! हम आज भी चंद पूंजीपतियो के हाथो की कठपुतली है और वह जैसा चाहता है हम हम वैसा ही करते है ! बिल्कुल कठपुतली की तरह उनके इशारों पर नाचते है . madhubanimedia.com के एक पाठक है मनीष सिंह पेशा से चार्टर एकाउंटेंट है ! दिल्ली मे रहते है ,परिचय नया नया हुआ है लेकिन इतने कम समय में हमारी मित्रता में इतना प्रगाढ़ता आ गया की वे हर एक दो दिनों से हाल चाल जानने के लिए फोन घुमाते ही रहते है ! साथ ही वे madhubanimedia.com के नियमित पाठक है वे हर खबर को बारीकी से पढ़ते भी है ! कुछ दिन पहले हमने मधुबनी जिला पदाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के कम्बल बांटने वाली वीडियो को अपने फेसबुक पेज पर लगाया था ,वीडियो को काफी लोगो ने देखा उन्ही देखने वालों मे मनीष सिंह ने भी थे, वीडियो को देखने के बाद हमें फोन किया और कहा अभिषेक जी ठण्ड बहुत पड़ रही है मैं चाहता हु गरीबो के बिच कुछ कम्बल वितरण कर दिया जाय ! मैं ने कहा नेकी और पूछ पूछ ,फिर उन्होंने एक दिन का समय निकालकर पटना में कम्बल खरीदा और मधुबनी पहुंच गए कम्बल लेकर ! तय हुआ पहले खनगांव में कम्बल बितरण किया जाएगा फिर भौआड़ा में घर घर कम्बल पहुचायेंगे ! दरअसल madhubanimedia.com के एक श्रोता है फहीम बकर मूसा जी समाजसेवी है और बीएससी में पढ़ रहे है ! उन्होंने कुछ लोगो का लिस्ट बनाया था जिसे वह कम्बल देना चाहते थे ! हमने बबलू जी के साथ खनगाँव मे कम्बल बितरण किया घर घर दस्तक देकर बिना किसी भेद भाव के कम्बल बितरण किये इस दौरान रात करीब दस बज गए जिसके बाद हम मधुबनी पहुंचे यहाँ हमारे दो मित्र साथ जुड़ गए एक अख़लाकुर रहमान और दुसरा पिंटू पटवा जी वे भी हमारे साथ निकल पड़े समाज सेवा में हाथ बंटाने ! अख़लाकुर रहमान पेशा से पत्रकार है जबकि पिंटू पटवा जी मधुबनी के युवा उधमी है ! हमलोग भौआरा पहुंचे जहा फहीम मूसा जी अपने कुछ मित्रो के साथ पहले से खड़े मिले ! हमलोगो ने गाडी से कम्बल को हाथों में कम्बल उठाया और मुहल्ले में निकल पड़े ! पर मुहल्ले का हाल देखकर कलेजा कांप उठा दिमाग सुन्न हो गया और शरीर को काटो तो खून नहीं जैसी स्थिति में हो गयी ! संकरी गली से गुजरते हुए जो दिखाई दे रहा था यक़ीनन यह तस्वीर मानवता को कलंकित कर रही थी !इक्कीसवीं सदी का ऐसा तस्वीर यकीन नहीँ हो रहा था लेकिन यह वास्तविक था ! घर के नाम पर टाट का मकान जिसमे कई मकानों में छत नहीं था किसी के पास मकान के नाम पर एक पन्नी का पर्दा नजर आ रहा था ! मोहल्ले के दर्जनों लोग दूसरे किसी मकान में सोये हुए थे ! झुकी हुई झोपडी पता नहीं कब गिर जाए यह सोचकर हम बच बच कर चल रहे थे पर वे लोग एक कमरे में दो दर्जन महिला पुरुष एक साथ सोये हुए थे ! मन में बड़ा सवाल लिए वापस घर लौट आया ,मेरा सवाल है आखिर माइनोरिटी के नाम पर वोट लेने वाले को क्या यह परिवार दिखाई नहीं दे रहा है,या देखने का प्रयास नहीं कर रहे है ? सवाल यह भी है की आजादी के साठ साल गुजर जाने के बाद भी आखिर क्यों लोग रोटी कपड़ा और मकान से जूझ रहे है ? यह तस्वीर किसी गाँव की नहीँ है मधुबनी शहर का है !इस मुहल्ले ने नगर का चेयरमैन भी बनाया है लेकिन मुहल्ले की दिशा और दशा नहीँ बदली !
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