कन्हैया का 2019 में क्या रोल है ? क्या भाजपा कन्हैया का डर दिखाकर युवाओं को दो पाट करना चाहता है !


डेस्क ,पटना 
कन्हैया कुमार नाम तो सूना होगा ,मैं ने पहली बार कन्हैया का नाम जेएनयु प्रकरण में सूना था ,खूब आरोप लगे थे लेकिन मीडिया जागरूक थी और दूध का दूध और पानी का पानी करने में सफल रही थी ! खूब तमाशा हुआ उमर, कन्हैया समेत जेएनयू के कई छात्र नेता पर देश द्रोह का इल्जाम लगा खूब राजनीति हुई लेकिन हुआ वही, ढाक का तीन पात ! बाद में पता चला फेक वीडियो था इसलिए दिल्ली पुलिस ने केस में चार्जसीट करना भी मुनासिब नहीं समझा और मामला ख़त्म हो गया लेकिन इस विवाद में कन्हैया सेकुलर युवा नेता बन गया जिसका विरोध करने के लिए भाजपा ने अपने प्रमुख सिपाहसलार संबित पात्रा को पीछे छोड़ दिया ! कन्हैया नेशनल टीभी डिबेट का जाना माना चेहरा बन गया और हर ओर से बुलाहट होने लगी ! लोग पार्टी लाइन से ऊपर उठकर कन्हैया को चाहने लगे और भाजपा वालो को बैठे बिठाये ऐसा विरोधी नेता मिल गया जिसका विरोध कर लोगो को गोलबंदी तो किया जा सकता है लेकिन वह विरोधी कभी भाजपा को टक्कर नहीं दे सकता है ! भाजपा के लिए इससे बढ़िया और क्या हो सकता है ,क्योकि फिलहाल बामपंथी के पास कोई बड़ा जनाधार नहीं है ऐसे में कम्युनिस्ट अपने दम पर भाजपा को हराने से तो रही ! तो सवाल बड़ा है आखिर कन्हैया प्रकरण को मीडिया ने इतना हाइलाइटेड क्यों किया ? क्या भाजपा चाह रही थी कि कन्हैया नेता बने और भाजपा कन्हैया का विरोध की राजनीति करके एक बार फिर युवाओ को अपने ओर आकर्षित करने में कामयाब हो जाए ! फिलहाल ऐसा ही प्रतीत हो रहा है क्योकि 2014 की तुलना में युवाओं में भी दो खेमा नजर आने लगा है ! कन्हैया सीपीआई का प्रचार प्रसार में जुटा हुआ है, और मोदी का विरोध कर रहा है ! टीभी डिबेट में भी भाजपा के मुख्य प्रवक्ता संबित पात्रा हमेशा कन्हैया के सामने रहते है जबकि कई बड़े युवा नेता लोकसभा और राज्य सभा में मौजूद है और उनके पास जनाधार भी है लेकिन उनके या उनके पार्टी को तरजीह इन डिबेटोँ में नहीं दिया जाता है ! तो फिर सवाल यह है की कन्हैया के इस डिबेट से क्या निष्कर्ष निकलने वाला है ? क्या चुनावी दंगल में मीडिया ने अपना जगह तय कर लिया है की विकाश की वजाय विरोध का डिवेट ही चुनावी नतीजा निकालेगा इसलिए कन्हैया जैसे युवा नेता 2019 का खेवनहार साबित होंगे ? फिलहाल सीपीआई के पास लोकसभा में एक सीट है और राज्यसभा में भी एक सीट है ! साथ ही कम्युनिस्ट का मुख्य वोट वही है जो कांग्रेस का है यानी दलित अगरा और मुस्लिम ! आजकल अगरा का अधिकतर वोट भाजपा के पास है और अगरा नेता कम्युनिस्ट के पास है, ऐसे में कही दलित और मुस्लिम वोट को तोड़ने के लिए यह प्रयोग काफी हद तक सफल दिख रहा है !मेरे मन में बार बार यह सवाल कौंध रहा है, कुछ हद तक राहुल गांधी भी युवा है और उनका टीम भी युवाओ से सुसज्जित है तो क्या उनके टीम को नजरअंदाज करने के लिए यह राजनितिक प्रयोग तो नहीं किया जा रहा है ? मैं कई सवालों को लेकर कन्हैया से मिलने उनके होटल गया था ,उनसे मिला भी लेकिन नाम और शक्ल से कन्हैया सा दिखने वाला यह शख्स सायद वह कन्हैया नहीं था जो एक वर्ष पूर्व मिला था ! पिछले वर्ष मैं जिस कन्हैया से मिला था बिलकुल भोला भाला और गैर राजनीतिज्ञ सा प्रतीत हो रहा था लेकिन यह कन्हैया बिल्कुल राजनीतिज्ञ बन चुका है ,बातचीत करने का ढंग ,एटीट्यूड सबकुछ हाई लेवल का हो चुका है ! फिर मैं ने उनका पूरा भाषण सूना और रेकॉर्ड किया उनके भाषण में मोदी विरोध लहजा ,दलित मुस्लिम यूनिटी पर जोड़ ,युवाओं से मिलना, बिहार की राजनीति में इंट्रेस्ट सबकुछ एक परफेक्ट राजनेता वाला गुण ! तो क्या इस बार बिहार में भाजपा कन्हैया के कंधा पर बन्दुक रखकर 2019 का नैय्या पार लगने का कोशिस कर रहा है ? सवाल का जवाव तो सायद आनेवाला वक्त देगा लेकिन यह तय है भाजपा बिना जनाधार वाले नेताओं का विरोध करके बिहार की राजनीति का बैतरणी पार करने की कोशिश में लगा है !

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