मधुबनी पेंटिंग कलाकार उमा कुमारी का संघर्ष


मिथिलांचल में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है मधुबनी चित्रकला ,पहले इस कला को सिखने के लिये अलग से कोई प्रशिक्षण केंद्र का व्यवस्था नहीँ था और घर के बड़े बुजुर्ग बच्चों को कला की बारीकी को सीखाया करते थे ! प्रारंभिक में महिलाओं एवं लड़कियों को मधुबनी चित्रकला सिखाया जाता था लेकिन बाद के वर्षों मे लड़के युवक भी इस क्षेत्र मे आने लगे ! कहा जाता है मधुबनी पेंटिंग विधवा की कोख से जन्म लिया है और इसलिये इसके चित्रों मे उसका वियोग छिपा हुआ दिखता है ! मधुबनी चित्रकला के कलाकृतियों मे महिला से जुड़े संस्कॄति की झलक सबसे अधिक देखने को मिलती है ! इसका सबसे बड़ा कारण है महिलाओं के द्धारा इस चित्रकला को संरक्षित किया गया है और साथ ही उनके द्धारा ही कला को अगले पीढ़ी को हस्तांतरित किया गया है ! रंगो की बारीकी को परिवार के सदस्य या समाज के बड़े बुजुर्ग बच्चों के होश संभालते ही सिखाने लगते थे ! आज के दौर में मधुबनी पेंटिंग के बदौलत कई परिवार का जीवन यापन चलता है ! खेल खेल में सीखे गए मधुबनी पेंटिंग जीवन के संघर्ष में काम आ रहा है इस कलाकारी के बदौलत से पैसे और समाज में इज्जत ,प्रतिष्ठा भी मिल रहा है ! 

कुछ ऐसे ही बचपन की कलाकारी के बदौलत उमा कुमारी झा आज समाज का नाम रौशन कर रही है ! मधुबनी के कलुआही प्रखंड के हरिपुर दक्षिण डीह टोल में जन्मी उमा कुमारी झा ने बचपन में अपनी माँ से मधुबनी पेंटिंग सीखा और आज यही मधुबनी पेंटिंग उनके जीवन जीने का सहारा है ! उमा ने अपने 39 वर्ष के जीवन में काफी संघर्ष किया है ! उमा का विवाह एक आम लड़कियों के तरह ही हुआ ,पति होटल ओबेराय में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे इसलिए दाम्पत्य जीवन का शुरुआत बड़े ही खुशनुमा माहौल में हुआ ! लेकिन यह सुख अधिक दिनों तक नहीं रहा एक सड़क दुर्घटना में पति का मौत हो गया ! जीवन साथी बीच मझदार में छोड़ कर चले गए और उमा को जीवन से संघर्ष करने के लिए छोड़ गए ! उमा 2007 में मुंबई जैसे महानगर को छोड़कर वापस अपने गांव लौट आयी ,पति के सहारे मुम्बई गयी उमा एक बड़ी जिम्मेवारी के साथ लौटी ,अब उसके कंधों पर तीन बच्चों का भरण पोषण की जिम्मेवारी थी ! कोई रोजगार नहीं था पढ़ाई मात्र बारहवीं तक की थी इसलिए स्नातक करने लगी ताकि कम से कम शिक्षक बन जाए लेकिन स्नातक करते करते वह तीस वर्ष की हो गयी और उसके लिए एक बार फिर रोजगार के सारे दरबाजे बंद हो गए ! लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और मधुबनी पेंटिंग को अपना रोजगार बनाने का फैसला किया बचपन में सीखे गए पेंटिंग को कागजों पर बारीकी से उकेरने के लिए एक निजी संस्थान से प्रशिक्षण लिया और मधुबनी पेंटिंग के रोजगार से जुड़ गयी ! यह उमा का संघर्ष ही है की उसे वर्ष 2014-2015 में स्टेट अवार्ड से नवाजा गया और अब नेशनल अवार्ड के दौर में शामिल हो गयी है ! उमा ने madhubanimedia.com से खास बातचीत में बतायी की वह बीस हजार तक कमा लेती है और मधुबनी पेंटिंग के ही बदौलत अपना एवं अपने बच्चों का भरण पोषण कर रही है ! उन्होंने बताया की वह जब भी एक्जीविशन में जाती है तो अपने बच्चों को मायके में छोड़ आती है ! वे बताती है मैं कुछ और अच्छा कर सकती हु लेकिन आर्थिक कारणों  नहीं कर पा रही हु पिछले महीने बैंक से पाँच लाख का लोन के लिए अप्लाई किया था लेकिन बैंक ने देने से मना कर दिया ! सरकार को चाहिए कलाकरों को कुछ सुविधा मुहैया कराये !

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