मिठास के लिये तरस रहा है सकरी चीनी मिल


सकरी चीनी मिल तो आपको याद है ना, आखिर कौन भूल सकता इस इस चीनी मिल से निकले मिठास को यह चीनी मिल का पूरे भारत वर्ष मे अपने बेहतर क्वालिटी के चीनी के लिये पहचान थी. हर कोई इस मिल की चीनी का स्वाद चखना चाहता था पर आज याद रखने के लिए मिल में कुछ नहीं है. मिल में ना तो वह स्वादिष्ट चीनी है ना वह मजदूरों का हुजूम ना किसानों की आपा धापी ना अधिकारी का आवा जाही ना यहाँ नेतागिरी के मौके मौजूद है यहाँ है तो बस एक जरजर बेजान और अस्तितित्व मिटने की कगार पर खड़ा एक खंडहर. जिसके दीवारों पर पेड़ उग आये है कैेम्पस जंगल में तब्दील हो चुका है. दीवारें टूट चुकी है पूरा मिल एक वीरान भुत बंगला बन चुका है. मजदूरों के पसीने सुख चुके है. चीनी मिल के चिमनी के साथ साथ मजदुर के घरो के चूल्हे से भी धुँआ निकलना बंद हो चुका है. ना कोई वाहन ना कोई मजदुर बस बची है तो कुछ मजदुर की आशाएं वे इस आश के साथ जी रहे है की हमें सरकार एक दिन बकाया मजदूरी जरूर देगी और वे इसी आशा के सहारे जी रहे है. कुछ मजदुर तो हररोज बैंक पासबुक लेकर बैंक पर पहुंच जाते है इस आश के साथ की आज पैसा उनके खाते में चढ़ गया होगा पर बैंक मैनेजर के ना शब्द से निराश भुझे मन वापस घर लौट आते है पर आशाये जीवित है उनके एक और कल का इन्तजार शायद कल रूपये उनके खाते में आ जाएंगे. यह वे मजदुर है जिनको सकरी लोहट रैयाम चीनी मिल बंद होने के बाद जीविकोपार्जन का दुसरा कोई संसाधन नहीं मिला. पर वे मजदुर भी अब धीरे धीरे मौत की आगोस में हमेशा के लिए सो रहे है. हर महीने एक दो मजदुर की मौत भोजन की कमी , कुपोषण, इलाज के अभाव में हो रहे है पर सरकार के लिए यह आम बात है. आशा अभी भी बची है कुछेक जीवट कामगार संगठन को और वे इन मजदुर के मजदूरी के लिए निरंतर संघर्ष करते हुए नजर आते है आशा कुछ नए युवाओ का एक आध झुण्ड को भी है जो कभी कभी चीनी मिल के लिए संघर्ष करते हुए जरूर नजर आते है. पर वह संघर्ष चंद मिनटों या घंटो के लिए रहता हुआ प्रतीत होता है. कारण उनके आवाज को दुर दुर तक पहुंचाने वाले मीडिया भी इस चीनी मिल को मृत मान चुकी है. और यही कारण है अब तो मीडिया भी इस चीनी मिल से दुरी बनाती हुई नजर आती है. शायद स्थानीय मीडिया की सोच भी इस चीनी मिल के तरह मृत हो चुकी है. लेकिन एक जब मै एक मीडिया कर्मी के तरह सोचता हूं तो यह सवाल बड़ा नजर आता है आखिर कौन संजीवनी लाकर देगा इस चीनी मिल को ? सवाल यह भी है की आखिर आज हनुमान कहा है ? फिर सोच बदल जाती है भला इस भागदौड़ की जिंदगी में कौन ऐसे चीनी मिल को देखता है ? जहा के लोग खुद मर चुका है युवाओ की जिद्द जूनून समाप्त हो चुकी है ? और फिर लोग कम्प्यूटर का जामने में प्रवेश कर चुके है और यह मिल खटारा हो चुका है मृत हो चुका है ? लोगो के जीवन मे मिठास घोलने वाली चीनी मिल के मजदुर का जीवन करवाहट से भर गए है.

मिल की स्थिती 
चीनी मिल के दरवाजे पर ताला लगा है. कुछेक स्टाफ काम करते हुए जरूर मिल जाते है जो बुढ़े हो चुके है. वे अब काम करने की स्थिती में नहीं रहे है. मजदूर हर रोज एक आश से जी रहा है आखिर कभी तो सरकार कि नींद टूटेगी और कूछ पैसे मिल जायेंगे और  यह आशा एक दो मजदूर नहीँ देख रहे है बल्कि नौ सौ से अधिक मजदूर है जिसका जीवन का एकमात्र सपना है उनका मजदूरी उन्हें मिल जाए. कई मजदूर तो इस इंतजार मे परलोक भी सिधार चुके है. कई मजदूरो को खाने तक के पैसे नहीँ जुट रहे है. हिन्द मजदूर सभा के प्रदेश महामंत्री अगनु यादव ने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिन्हा के सहयोग से डीएम के अकाउंट मे सोलह करोड़ बहत्तर लाख एकावन हजार रुपये जमा करा दिया गया है. यह रूपये मजदुर के एकाउंट में जमा किया जाना था जो पिछले डेढ़ वर्षो से अधिकारी के लापरवाही के कारण मजदूरों को नहीं मिल पाया है. मजदुर के रूपये आंध्रा बैंक की सोभा बढ़ा रहा है. अधिकारी के नियत में खोट नजर आ रहा है.

सवाल बड़ा है 
लेकिन सवाल बड़ा है आखिर 16 महीनों से डीएम के एकाउंट मे पैसे क्यों पड़े है ? कारण पता नहीँ है क्योकि अधिकारी गोल गोल जवाव दे रहे है. जब सरकार का सख्त निर्देश था कि चीनी मिल से जुड़े सभी मजदूर का सभी प्रकार से जाँच कर लिया गया है एवं डीएम को सभी मजदूर का खाता नम्बर एवं मजदूरों को दी जाने वाली राशी बता दिया गया है एवं डीएम के माध्यम से सभी मजदूर को पेमेंट जल्द से जल्द देना है तो आखिर भुगतान क्यों नहीँ किया गया है ? मधुबनी जिला पदाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक ने कहा हम जल्द ही सभी मजदूर का पेमेंट रीलिज कर देंगे. एक महीने का समय दीजिए हम एक महीने के अंदर पेमेंट कर देंगे. बहत्तर व्यक्ति का हमने पेमेंट किया है इक्कीस व्यक्ति का पेमेंट बनकर तैयार है बाकी को केम्प के माध्यम से पेमेंट हम कर देंगे.

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हनुमान की तलाश
लोगो के जीवन को मधुर कर देने वाला मजदूर आज मज़दूरी को तरस रहा है. उसके जीवन मे कोई मधुर घोलने वाला नहीँ मिल रहा है. लाचार और बिमार हो चुके सिस्टम के आगे बेबस मजदूर कभी इलाज के बगैर तो कभी भूख और कुपोषन से मरने को मजबूर है. उन्हें तलाश है एक हनुमान की जो उनके संजीवनी रूपी मजदूरी उन्हें दिला सके.

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