विश्व प्रसिद्द सौराठ सभा को है 'नायक' की तलाश


विश्व प्रसिद्ध सौराठ सभा का शुरुआत 25 जून रविवार से हो गया जो कि 3 जुलाई तक चलेगा. यूं कहें तो ऑनलाइन दुनिया में यह ऐतिहासिक ऑफ लाइन मेट्रोमोनियल साइट की खो रही अस्तित्व को बचाने का भरसक प्रयास की शुरुआत विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी शुरू हो चुका है. 

सौराठ सभा 
सौराठ सभा की शुरुआत सन्- 1820 ई. में दरभंगा महराज क्षत्र सिंह के कार्यकाल में हुई थी. उससे पहले यह सभा समौल नामक गाँव में लगता था. धारे झा मुख्य पंजिकार के देख-रेख में समौल में लगने वाला यह सभा किसी असुविधा के कारण अपने मित्र तरौनी ग्राम निवासी हरखु गोसाई के साथ यह वैवाहिक सभा समस्त पंजी व सामग्री के साथ सौराठ सभा में स्थित हो गया. अभी धारे झा के परिवार के सम्बंधी छठे पुश्त के पंजिकार श्री प्रमोध कुमार मिश्र कहते है कि मैथिल ब्राह्मणों के लिए सभा हेतु 22बीघा जमीन दरभंगा महराज क्षत्र सिंह के द्वारा दी गई थी. जमीन के कागजात पर भी उल्लेख है कि वैवाहिक शुद्ध (लगन) के अन्त में वार्षिक सभा हेतु दरभंगा महराज के द्वारा प्रद्त. और उस समय समस्त मिथिला (नेपाल व भारत) मिलाकर कुल 14 स्थानों पर ऐसा सभा लगता था और अभी मात्र दो जगहों पर सभा का अस्तित्व है जो की मधुबनी जिले के सौराठ व सीतामढ़ी जिले के ससौला में है. 
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ससौला जो कि सीतामढ़ी जिला मुख्यालय से 14 किमी दुर है वो आखरी पड़ाव में है, जो की सिर्फ नाम मात्र कहा जा सकता है. दुसरा सौराठ सभा विगत 20-25 वर्षों से सभा में कम होते लोग, अधिग्रहण होते जमीन को देखते हुए कई तरह के प्रश्न मन में उभरते है. जैसे की जिस सौराठ सभा में 1971ई. में डेढ़ लाख लोग आये थे उस सभा में 45साल बाद डेढ़ हजार लोग नहीं जुट पाते है उसका कारण क्या माना जाय ? कुछ लोग कहते है कि सरकार बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं करवाती है जैसे पानी, बिजली, यातायात व ठहरने की समुचित व्यवस्था सौराठ में नहीं होने के कारण दूर दराज से आने की इक्षा रखने वाले लोग चाह कर भी नहीं आ पाते है. 2010 के चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतिश कुमार व तत्कालीन विधान सभा अध्यक्ष ताराकान्त झा द्वारा साझा घोषणा किया गया था की सौराठ में पुरातत्व विश्वविद्यालय खुलेगा जिसमें मिथिला चित्रकला आदि भी सिखाई जायेगी परंतु वो भी घोषणा 7 वर्ष बाद भी मूर्त रूप नहीं ले सकी है. 
ऐसी ही कुछ प्रश्नों के जवाब जानने के लिए मधुबनी मीडिया की टीम सौराठ सभा गाछी पंहुचकर विद्वतजनों से बात की. सौराठ सभा के प्रति लोगों की निष्क्रियता के सवाल पर जवाब के लिए हमने कई विद्वानों से बातचीत की, जिसमें सबका जबाब एक जैसा ही था. विद्वतजनों का कहना था की संस्कृति समाज की धरोहर होती है जो हम आने वाले पीढ़ियों के लिए छोड़ जाते है. किसी भी समाज के विकास के लिए संस्कृति का विकास होना जरुरी है. संस्कृति के विकाश के बिना समाज का विकास संभव नही है. मिथिलांचल की पुरे विश्व में एक अलग पहचान है और पहचान यहां की संस्कृति और सभ्यता से है. सभा के माध्यम से विवाह की जटिलता को दूर किया जाता था आज भी मकसद वही है. पंजीयन लोगों पूर्वजो के नामो को सहेजने के साथ साथ कई प्रकार के वंशानुगत रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक बन है इसलिए पंजीयन की जरुरत है.

स्थानीय पंजीकार विनोद मिश्र ने बताया की पहले के अपेक्षा सौराठ सभा का बहुत अधिक ह्रास हुआ है, पहले सवा लाख तक आदमी जुटते थे लेकिन अब हज़ार की संख्या में भी नहीं जुटते है. लोगो का सौराठ सभा में आना कम हुआ है, कुछ लोग पंजी कराने सौराठ सभा में जरूर आते है. विगत दो दिनों में पचास से अधिक सौराठ सभा में पंजीयन यानी सिद्धांत हुआ है. 

पंजीकार विश्वमोहन झा ने बताया पश्चात सभ्यता के कारण सौराठ सभा का ह्रास हुआ है. पहले हमारे पूर्वज को धुप पानी सहने की क्षमता थी, इसलिए वे यहां आते थे लेकिन आज लोगो को धुप पानी सहने की क्षमता घटी है. लोग एसी में रहने लगे है बोतल का पानी पिते है इसलिए यहां आने से कतराते है. आज सौराठ सभा का मोडलाइजेसन होना चाहिए लोगो के मन का मोडलाइजेसन होना चाहिए यह सौराठ गांव की सम्पति नहीं है बल्कि यह पूरा मिथिलांचल की सम्पति है. आज भी यदि मैथिल यहां जुटने लगेंगे तो सरकार को हर सुविधा मुहैया कराना पड़ेगा.
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साथ ही कुछ लोग यह भी बताते है की इन सभी कारणों का एक ही जवाब है की जब तक सौराठ सभा में लोग आना शुरू नहीं करेंगे तब तक यहां की स्थिति में विशेष बदलाव की कल्पना करना न्यायोचित नहीं होगा. अगर लोगों की भीड़ यहां आने वाले सालों में बढ़ती है तो यह निश्चित है की यहां विकास होगा. यहां की अतिक्रमित भूमि को लोग स्वतः खाली कर देंगे, या सरकार व प्रशासन खुद इसको सख्ती से निपटेगी. लेकिन इन सब बातों के बिच एक प्रश्न उभरता है की अगर कल्पना के अनुसार आने वाले सालों में भीड़ नहीं जुटती है तो क्या सौराठ सभा आने वाले सालों में सिर्फ पन्नों में सिमट जायेगा. सौराठ सभा को आज जरुरत है एक जिर्णोद्वारक की जो मिथिलांचल की सभ्यता और संस्कृति को सहेजने वाले इस सभा को पुनर्जीवित कर सकें. अभी बाईट 1-2 सालों में कुछ सामाजिक, मैथिल संगठन व युवाओं की समूह भी तत्परता के साथ सौराठ सभा में पुनः रौनक लाने के लिए कार्य कर रही है. दिनोंदिन इन संगठनों व युवाओं बढ़ती भागीदारी व सक्रियता इस आधुनिक युग में आधुनिक उपकरणों व पलायन का दंश झेल रही मिथिला में यह धरोहर को बचा पायेगी यह संदेह के साथ आशा को भी जागृत कर रही है. लेकिन मृतप्राय हो चुके इस ऐतिहासिक विश्वप्रसिद्द सौराठ सभा को बचाने के लिए नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है ताकि इस धरोहर को इतिहास बनने बचाया जा सके और सौराठ सभा से लोग अपने अतीत के साथ-साथ वर्तमान पर भी गर्व कर सकें.

इस रिपोर्ट के कुछ अंश मिथिला के धरोहरों पर शोध कर रहे युवा रंधीर झा के भी हैं. 

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