सरकार आज भले ही जन्म मृत्यु और विवाह के पंजीयन पर बल दे रही है. लेकिन मिथिलांचल में विवाह के पंजीयन प्रथा सैकड़ो वर्ष पूर्व से ही प्रचलित है. राजा हरि सिंह देव ने सन 1310 ई० सक संवत 1232 में मिथिलांचल के सभी जातियों के वंशावली पंजीयन की व्यवस्था का शुरुआत किया था. उद्देश्य साफ था आपसी रिश्तों में विवाह नहीं हो इसलिए पितृ कुल से सात और मातृ कुल से पांच पक्षों को मिलाना अनिवार्य किया गया. 32 कुलो को देखने के बाद यदि पंजीकार के द्वारा विवाह की स्वीकृति के बाद ही विवाह संभव होता है. यह रक्त शुद्धता के लिए बनाया गया प्रथा को बाद के वर्षो में कई विद्वानों ने सही माना है.
पंजीकारों की संख्या घटी
समय बीतने के साथ धीरे धीरे मैथिल ब्राह्मणों को छोड़कर बांकी जातियों ने पंजीयन को अधिक महत्व नहीं दिया परन्तु दुनियां भर में फैले लगभग सात करोड़ मैथिल ब्राह्मणों के 16 गोत्रों और लगभग 450 मूलग्राम को सहेजने के लिए आज भी कुछ पंजीकार निःशुल्क दिन रात काम कर रहे है. इस स्वस्थ्य परंपरा को सहेजने के लिए पहले जहाँ हजारों पंजीकार पंजियन का काम मिलकर करते थे वहीं परिस्थिति बदली और पंजीकारों की संख्या घटकर चार पांच में एह गई है.
ऑफलाइन मेट्रोमोनियल साइट्स
आज विवाह भले ही विभिन्न बेबसाइटों के माध्यम से हो रहा है. परन्तु उस समय बेबसाइट की जगह पुरे मिथलांचल में 42 जगहों पर मैथिल ब्राह्मणों का सभा लगाया जाता था. इस सभा को हम ऑफ लाइन मेट्रोमोनियल साइट्स कह सकते है और इस साइट्स को ऑपरेट करने के लिये सौराठ को मुख्य सभा स्थली बनाया गया. यहां सभी जगहों पर तय किये गए विवाह के पंजीयन की एक प्रति उपलब्ध करने की परंपरा रखी गयी. यहां बायोडाटा के जगह पर लड़के को स्वयं उपस्थित होकर अपने बारे में बताना होता था. लड़की वालो संतुष्टि के उपरांत विवाह की बांकी प्रक्रिया किया जाता था।
कम्प्यूटर के अभाव में पंजीकार भवन पर कब्ज़ा
सभा के माध्यम से विवाह की जटिलता को दूर किया जाता था वाही पंजीयन लोगों पूर्वजो के नमो को सहेजने के साथ साथ कई प्रकार के वंशानुगत रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक बन गया. परन्तु आज परिस्थिति कूछ और है सौराठ सभा अपनी अंतिम सांसे गिन रही है तो पंजीकर भी सिमटते जा रहे है. तत्कालीन स्थानीय सांसद शकील अहमद ने अपने निजी कोष से पंजी व्यवस्था को सहेजने के लिए एक भवन तो बनाया परन्तु कम्प्यूटर नही रहने के कारण आज भवन अतिक्रमित हो चुका है. कुछ लोग शादी के वक्त पंजीकर के पास पंजीकरण कराने तो पहुंचते है परन्तु पंजी के भविष्य की चिंता किसी को नही है. आज पंजी व्यवस्था मरणासन्न हो चुकी है.
जिर्णोधारक की तलाश
सौराठ सभा एवं पंजीयन के लिए प्रख्यात मिथलांचल को जरूरत है इसे सहेजने की. अब देखना यह है की सैकड़ो वर्ष पूर्व सुरु हुए इस परंपरा के सही तथ्यों को पहचान कर लोग इसे सहेजने का काम करते है या इसे बोझ समझ कर इतिहास बना देना चाहते हैं. विगत कई वर्षों से कूछ लोग सौराठ सभा के जीर्णोद्धार के नाम पर नए नए दावें व वादें करते रहे है. लेकिन अब तक यह सिलसिला सस्ती लोकप्रियता लेना ही साबित हुई है. धरातल पर इसके प्रति कुछ नया देखने के लिए नही मिल रहा है. जानकारी हो कि इस वर्ष भी 25 जून से इस ऐतिहासिक सौराठ सभा का आयोजन किया जा रहा है.
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