बेचारे किसान त्राहिमाम कर रहे है



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बाढ़ तो गयी मगर पूरे जिले की  खेती को भी अपने साथ ले गयी। बेचारे  किसान त्राहिमाम कर रहे है ।जिले में बाढ़ आने से पहले तक 96% धान की रोपनी हो चुकी थी।  जिसे इस प्रलयंकारी बाढ़ ने पूरी तरह  से नष्ट कर दिया और लाखो एकड़ की खड़ी फसल  बर्बाद हो गयी ।

कोसी के पेट मे बसे गाँव हो चुके है बर्बाद 

कोसी के पेट में बसा  मधेपुर प्रखंड के  पंचायत बस्सीपटटी ,द्वालख ,महपतिया समेत यहाँ के नौ पंचायत बाढ़ की विभीषिका के गवाह बने ! यहाँ की  सड़कें जगह जगह से  टूट चुकी है। इन पंचायतो तक सिर्फ पैदल ही जाया जा सकता है ।वह भी मुख्य सड़क से कम से कम आठ किलोमीटर पैदल यात्रा करने के बाद। इन पंचायतों के  खेतो में लगे फसल गल कर मिटटी में मिल चुके है ! धान के कुछ काले और आधे गले हुए पौधे अपने होने का ऐहसास दिला रहे है। किसानों ने बताया कि खेती तो बरबाद हुई ही अब आगे भी हमलोगो को कोई देखने वाला भी नहीं है ! पता नहीँ अब इस साल हम अब क्या खाएंगे ?


एक लाख एकड़ मे फसल हो चुके है नष्ट 

कोसी के आसपास मधेपुर , फुलपरास ,घोघडीहा प्रखंड के सभी पंचायत बाढ़ से प्रभावित है ! इन प्रखंडों के अलावे बेनीपट्टी ,साहर घाट , मधवापुर ,हरलाखी ,बिस्फी ,बाबूबरही ,लौकही ,जयनगर को भी काफी छति हुआ है ! इन प्रखंड में लगभग एक लाख एकड़ में लगे फसल बर्बाद हो चुके है ! धान के फसल के अलावा मकई और अरहर को भी काफी नुकसान हुआ है ! प्रारम्भिक अनुमान के आधार पर ऐसा माना जा रहा है कि करीब एक लाख एकड़ भूमी की फसल पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है ।


चुरा गुड़ पर निर्भर है असली किसान 

बाढ़ के आने के बाद उसके स्थाई निदान की बाते तो शुरू हो जाती है ।मगर आजतक इस समस्या का कोई स्थाई निदान नहीँ हो पाया है । बाढ़ पूर्व की तैयारियां भी आधी अधूरी ही होती है । बांधो का हाल बुरा है । इनकी मरम्मत कागजों में ही हो जाती है मगर  धरातल का नजारा कुछ और ही होता है ।खेती नहीं करने वाले जमींदार को तीन तरह से लाभ मिल जाता है ---इंसोरेंस ,पेक्स लोन माफ़ी और फसल छति मुआबजा के रुप में । पर मजबूर बटाईदार ,जो असल किसान होते हैं उन्हें सरकार के चुरा गुड़ से ही संतोष करना पड़ता है ।!

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